देशभक्ति कविता यानि देश के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने वाली कविता, इन कविताओं का मूल उद्देश्य होता है देश के प्रति सम्मान व्यक्त करना अगर आप देशभक्ति कविताओं की तलाश कर रहे हैं तो हम आपके लिए 100+ देश भक्ति कविताओं (100+Desh Bhakti Kavita) लेकर आए हैं ।
हमारे द्वारा इस आर्टिकल में उपलब्ध कराए गये देशभक्ति कविताओं को आप किसी देशभक्ति कार्यक्रम में जैसे 26 जनवरी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर या 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम के अवसर पर बोलकर सुना सकते हैं ताकि नागरिकों के मन देश के प्रति आत्मसम्मान की भावना पैदा हो सके।
100+ Desh Bhakti kavita in hindi 2023 | 100+ प्रेरणादायक देशभक्ति कविता
हमें मिली आज़ादी (सजीवन मयंक)

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से। हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से। आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी। लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।। व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया। हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।। हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से। हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।। गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है। जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।। प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर। हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।। लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से। हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।। हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है। उसके आँचल की छाया से छोटा ये संसार है।। हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे। सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।। विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से। हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।। ~सजीवन मयंक
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ~ श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में, काँपे शत्रु देखकर मन में, मिट जावे भय संकट सारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। इस झंडे के नीचे निर्भय, हो स्वराज जनता का निश्चय, बोलो भारत माता की जय, स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। आओ प्यारे वीरों आओ, देश-जाति पर बलि-बलि जाओ, एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भले ही जावे, विश्व-विजय करके दिखलावे, तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। ~ श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'
Ramdhari Singh Dinkar Desh Bhakti Kavita
जियो जियो अय हिन्दुस्तान - रामधारी सिंह दिनकर जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल। हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं! हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं। वीर - प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं ।। गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं, तन मन धन तुम पर कुर्बान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण, जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन! एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल, जितना कठिन खड्ग था, कर में उतना ही अंतर कोमल। थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर, स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर ।। हम उन वीरों की सन्तान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलने वाले, रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलने वाले। हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं । मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं। हम हैं शिवा - प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे, मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे। देंगे जान, नहीं ईमान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान। जियो, जियो अय देश, कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम। वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम। हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज़ ला सकता। सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ? पर कि हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे, जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे। हम प्रहरी यमराज समान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
जय जय भारतवर्ष प्रणाम ~ शंकर शैलेन्द्र
जय जय भारतवर्ष प्रणाम! युग-युग के आदर्श प्रणाम! शत्-शत् बंधन टूटे आज बैरी के प्रभु रूठे आज, अंधकार हे भाग रहा जाग रहा है तरुण विहान! जय जाग्रत् भारत संतान, जय उन्नत जनता सज्ञान ! जय मज़दूर, जयति किसान! वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम! धूल भरी इन राहों पर पीड़ित जन की आहों पर, किए उन्होंने अर्पित प्राण वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम! जब तक जीवन मुक्त न हो क्रंदन- बंधन मुक्त न हो जब तक दुनिया बदल न जाए सुखी शांत संयुक्त न हो ! देशभक्त मतवालों के हम सब हिम्मत वालों के, आगे बढ़ते चलें कदम, पर्वत चढ़ते चलें क़दम! ~ शंकर शैलेन्द्र
झॉंकी हिन्दुस्तान की
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की । उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है, दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है। जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की, इस मिट्टी से … ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे, इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे । ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे, कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मि नियाँ अंगारों पे। बोल रही है कण कण से कुर्बानी राजस्थान की इस मिट्टी से … देखो मुल्क मराठों का ये, यहाँ शिवाजी डोला था, मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था ।। बोली हर-हर महादेव की, बच्चा-बच्चा बोला था, यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की इस मिट्टी से … जलियाँ वाला बाग ये देखो वो दृश्य यहाँ चली थी गोलियाँ हजारों, ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ । एक तरफ़ बंदूकें दन दन, एक तरफ़ थी टोलियाँ मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ । यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की इस मिट्टी से … ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है, यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है । ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की इस मिट्टी से।
वह खून कहो किस मतलब का ~ गोपाल प्रसाद व्यास
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं। वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं।। वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है। जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है।। उस दिन लोगों ने सही-सही खून की कीमत पहचानी थी। जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मॉंगी उनसे कुरबानी थी।। बोले, “स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा। तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।। आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी। वह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी।। आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है। यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है।। यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया। मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया।। आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, “रक्त मुझे देना। इसके बदले भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना।। हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे। स्वर इनकलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते थे।। “हम देंगे-देंगे खून” शब्द बस यही सुनाई देते थे। रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे।। बोले सुभाष, “इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है। लो, यह कागज़, है कौन यहॉं आकर हस्ताक्षर करता है।। इसको भरनेवाले जन को सर्वस्व-समर्पण काना है। अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है।। पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है। इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिराना है।। वह आगे आए जिसके तन में खून भारतीय बहता हो। वह आगे आए जो अपने को हिंदुस्तानी कहता हो।। वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर करता हो। मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए जो इसको हँसकर लेता हो।। सारी जनता हुंकार उठी हम आते हैं, हम आते हैं। माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढाते हैं।। साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे। चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे।। फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे। आज़ादी के परवाने पर हस्ताक्षर करते जाते थे।। उस दिन तारों ने देखा था हिंदुस्तानी विश्वास नया। जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया।।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ~ Hariom Pawar Desh Bhakti Kavita
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के मै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है, तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के । जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के । कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के । मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ | घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ || कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी ! मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें । सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला ।। क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ | घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ || एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए दंगे कत्लेआम हुए, जितने मजहब के नाम हुए मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में, सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में। तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की ।। जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ | घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ | कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है, कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है । कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है । कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है, कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में, कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में, कोई ढाँचे का गिरना यू.एन.ओ. में ले जाता है कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है ।। लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं तुम भी गाली गिनते रहना, में जोड़ सिखाने आया हूँ | घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ || जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है । इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में । जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है ।। जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है।। जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं, तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं ।। सिंहों को ‘म्याऊं’ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है। कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं, मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ | घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ || भय बिन होय न प्रीत गुसांई’ – रामायण सिखलाती है राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है ।। जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं ।। केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को । अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है और कला की नगरी मुंबई लहू में सन जाती है राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं ।। इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है।। पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में ।। ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ, घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ।।
सारे जहां से प्यारा हिन्दुस्तान हमारा
हम प्यारे वासी उसके ये देश हमारा है। इसकी जयगान है आज ये महान , ये सब बलिदान हमारा है। सारे जहां से प्यारा हिन्दुस्तान हमारा है। वीर सपुतों के तन से बहती लहु की एक धारा है। इन वीरों की एक बात निराली ये दो धारी तलवार हैं। कभी ठण्डी हवा के झोकें हैं, कभी अग्नि के बौछार हैं। सारे जहां से प्यारा हिन्दुस्तान हमारा है। जहां प्रेम तपस्या भाईचारा लोगों का सहारा है। हम हैं प्यारे सबसे न्यारे, ये सन्देश बताना है। भारत के हम वासी हैं ये भारत देश हमारा है। लाखों बोली भाषा हैं फिर भी ना कोई बंटवारा है। यह धरा धान्य से परिपूर्ण है यहां खुशीयों का पखवारा है। संवेदना भरी है जिनमें क्षमा दान इसे आता है। ना झुकना है ना झुकाना है ये कर्तव्य हमारा है। हम हैं इसके प्यारे वासी भारत देश हमारा है।
हे मातृभूमि
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।
माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला;
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।
जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।
माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।
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उनकी याद करे जो बरसों तक सड़े जेल में, उनकी याद करें। जो फाँसी पर चढ़े खेल में, उनकी याद करें। याद करें काला पानी को, अंग्रेजों की मनमानी को, कोल्हू में जुट तेल पेरते, सावरकर से बलिदानी को। याद करें बहरे शासन को, बम से थर्राते आसन को, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू के आत्मोत्सर्ग पावन को । अन्यायी से लड़े, दया की मत फरियाद करें। उनकी याद करें। बलिदानों की बेला आई, लोकतंत्र दे रहा दुहाई, स्वाभिमान से वही जियेगा जिससे कीमत गई चुकाई । मुक्ति माँगती शक्ति संगठित, युक्ति सुसंगत, भक्ति अकम्पित, कृति तेजस्वी, घृति हिमगिरि-सी मुक्ति माँगती गति अप्रतिहत। अंतिम विजय सुनिश्चित, पथ में क्यों अवसाद करें? उनकी याद करें।
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प्यारा-प्यारा मेरा देश, सबसे न्यारा मेरा देश ।दुनियाँ जिस पर गर्व करे, ऐसा सितारा मेरा देश। सफल सलोना मेरा देश, चाँदी सोना मेरा देश ।गंगा जमुना की माला का फूलों वाला मेरा देश ।। आगे जाए मेरा देश, नित नए मुस्काए मेरा देश, इतिहास में बढ़ चढ़ कर, नाम दिखाएं मेरा देश ।।
हिन्द रक्षक जो कहलाए सोने की चिड़िया, में उस देश का वासी हूँ जो चले निडर कर्तव्य पथ पर, वो अचल, अडिग, अविनाशी हूँ ।। धरती माँ की रक्षा के खातिर अपनी जननी का भी त्याग किया, सरहद पर लड़ने के खातिर घर के आंगन को भी छोड़ दिया ।। ख्वाब है थोड़े से अलग और ख्वाहिश है जुदा, जान है कुर्बान, देश के लिए में हूँ हिन्द रक्षा पर फिदा ।।
प्रेरणादायक देशभक्ति कविता
रक्त को अपनाया है, सहर्ष शीश को गवाया है, तिरंगे के स्वाभिमान में अंतिम कतरा तक बहाया है ।। खिलौनों की उम्र में कईयो ने मौत को सजाया है, फंदे पर झूलते हुए खुद को इंकलाब बताया है । देश के उन वीरों के शहादत पर हमें गर्व है, उनके बदौलत ही ये पर्व है ।। सर कटाकर भी जो उन्होंने अपने सर नही झुकाया है, तभी तिरंगा शौर्य से स्वतंत्र हो लहराया है ।।
Short Motivational Desh Bhakti Kavita
लहू के हर क़तरे का बदला लेंगे हम ए वीरों तेरी, क़ुर्बानी ज़ाया नहीं होने देंगे हम ।
दुश्मन चाहें कितना भी ताक़तबर क्यूं ना हो, हर ईट का बदला पत्थर से लेंगे हम, देश के वीर जवानो को शत शत नमन ।
तिरंगे की बात करूँ तो मेरी अपनी कल्पना है। बीच मे चक्र सुदर्शन है और ऊपर नीचे रंगों का मेला है।
एक ओर धरती की हरियाली तो दूसरी ओर शहीदों का रक्त है। आसमान के रंग से रंगा हुआ अपना यह सुदर्शन चक्र है।
ये तिरंगा नहीं सिर्फ, ये मेरी जान है जन गण मन मेरा स्वाभिमान है गंगा किसी हार सी, मुकुट हिमालय विकराल है ।
पैर जिसके दिन रात धोये सागर होते धन्य इस मिट्टी को ललाट पर लगाकर जिसका हर पल करते गुणगान है वो हिंदुस्तान मेरा, जग से महान है ।।
लहराता तिरंगा, हर घर की शान बन
गौरव का गुणगान करें ! बहती हवा भी कह रही मत रोको मुझे ..मैं वंदन करूं ! तिरंगे को छूकर, आज मुझे पावन हो जाने दो ।
बलिदानों की याद में.. आज आंखें नम है
फिर देख तिरंगे की शान आज दिल कितना प्रसन्न है ।।
नोट :- हमें उम्मीद है कि आपको ये सभी देशभक्ति कविताएं पसंद आया होगा और हमारे इस आर्टिकल ने आपके मन में देशभक्ति की भावना उत्पन्न की होगी और आपके मन में एक नए जोश भरी होगी आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा इसके बारे में अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं ।
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