गुप्त साम्राज्य । Gupta Dynasty
गुप्त साम्राज्य का इतिहास , सभी शासक , शासन व्यवस्था एवं गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण
गुप्त साम्राज्य का इतिहास :-
गुप्त वंश के द्वारा स्थापित गुप्त साम्राज्य के शासन काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहा जाता है।
इस वंश में चंद्रगुप्त प्रथम , समुद्रगुप्त , चंद्रगुप्त विक्रमादित्य एवं स्कन्दगुप्त जैसे प्रतापी राजा हुए इस वंश का शासक समुद्रगुप्त एक महान शासक हुआ जिसने अपनी तलवार से संपूर्ण गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया इसका परिचय हमें प्रयाग प्रशस्ति के शिलालेख से मिलता है चंद्रगुप्त विक्रमादित्य एक महान सम्राट था जिसके काल में भारत में विद्या , शिक्षा , संस्कृति , विज्ञान कला एवं निर्माणकला में अभूतपूर्व प्रगति हुई धन-धान्य से भरपूर इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाने लगा।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय आए चीनी यात्री फाह्यान ने भारत की प्रशंसा करते हुए इसकी तत्कालीन राजधानी पाटलिपुत्र को दुनिया का श्रेष्ठतम नगर बताया था।
दो शताब्दियों के निरन्तर उत्थान के पश्चात् शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य इस वंश के अन्तिम महान् शासक स्कन्दगुप्त की 467 ईस्वी में मृत्यु के पश्चात् पतन की दिशा में तेजी से उन्मुख हुआ ।यद्यपि स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारियों ने किसी न किसी रूप में 550 ईस्वी तक मगध पर अधिकार रख सकने में सफलता प्राप्त की परन्तु इसके पश्चात् भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण युग का दावेदार गुप्त साम्राज्य सदा के लिये तिरोहित हो गया । गुप्त साम्राज्य का पतन किसी कारण विशेष का परिणाम नहीं था , बल्कि विभिन्न कारणों ने इस दिशा में योगदान दिया
पांचवी सदी में मध्य एशिया से हून आक्रमणकारियों का गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त ने डटकर सामना किया उन्हें अनेक बार हराया लेकिन बाद में निर्बल उत्तर अधिकारियों के समय में हुनो ने गुप्त साम्राज्य पर कब्जा कर लिया दूसरे फोन शासक के पश्चात हून भी कमजोर हो गए इसके बाद देश में पुनः अराजकता फैल गई।
गुप्त साम्राज्य की स्थापना :- गुप्त साम्राज्य की स्थापना गुप्त वंश के संस्थापक ‘ श्री गुप्त ‘ 245 ईस्वी में किया श्री गुप्त ने 40 वर्षों तक गुप्त साम्राज्य पर राज किया इसके बाद श्री गुप्त के पुत्र घटोत्कच ने गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला।
गुप्त साम्राज्य के शासक :-
1. श्री गुप्त :– श्री गुप्त गुप्त साम्राज्य का पहला शासक माना जाता है उन्होंने ही 245 ईसवी पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की थी। श्री गुप्त को ही गुप्त वंश के उदय का कारण माना जाता है उन्होंने ही गुप्त वंश और गुप्त साम्राज्य की स्थापना की 40 वर्षों तक गुप्त साम्राज्य पर राज किया। इसके बाद से श्री गुप्त ने अपने पुत्र घटोत्कच को साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया।
2. घटोत्कच गुप्त :- श्री गुप्त के बाद घटोत्कच ने गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला। प्राचीन लेखो में श्री गुप्त और उनके बेटे घटोत्कच को राजा की उपाधि दी गई है।
3. चंद्रगुप्त प्रथम :- गुप्त सम्राट घटोत्कच ने अपने पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम को 320 ईसवी में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। चंद्रगुप्त प्रथम एक महान और प्रतापी राजा थे कहां जाता है कि एक संधि के कारण चंद्रगुप्त प्रथम ने में मगध के एक शक्तिशाली प्रांत में लिच्छवी की राजकुमारी ‘ कुमार देवी ‘ से विवाह किया दहेज में मगध साम्राज्य पाकर और नेपाल के लिच्छवियों के साथ मिलकर चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू किया इस तरह उसने प्रयाग मगध और साकेत के काफी हिस्से को अपने कब्जे में कर लिया।
321 ईसवी तक चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने साम्राज्य को प्रयाग से लेकर गंगा नदी तक बढ़ा लिया था इसे महाराजाधिराज की उपाधि दी गई और उसने अनेक विवाह संधियों के माध्यम अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
लेकिन चंद्रगुप्त प्रथम को राजाधिराज की उपाधि दी गई जिसका अर्थ था राजाओं का भी राजा। चौथी सदी की शुरुआत में गुप्त वंश ने मगध के एक छोटे से हिंदू राज्य और वर्तमान बिहार से अपने शासन की शुरुआत की थी।
4. समुद्रगुप्त :- 335 ईस्वी में समुद्रगुप्त ने अपने पिता चंद्रगुप्त प्रथम के साम्राज्य की शासन व्यवस्था को आगे बढ़ाया। समुद्रगुप्त ने लगभग 45 वर्षों तक गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला उसने शुरुआत में ही अहिचात्र और पद्मावती साम्राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया इसके बाद उसने सभी आदिवासी इलाकों जैसे मालवा , योधे , अर्जुनायन और मदुरई पर आक्रमण कर दिया 380 ईस्वी में अपनी मौत से पूर्व समुद्रगुप्त ने 20 से भी ज्यादा गणराज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
समुद्रगुप्त ने अपने शासन को हिमालय से लेकर नर्मदा नदी तक फैलाया इतिहासकार उन्हें भारत का नेपोलियन मानते थे इसी कारण गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था जिसमें वह पड़ोसी राज्य को घोड़े के साथ युद्ध के लिए ललकारता था। अगर पड़ोसी राज्य उसके साथ मिलने को राजी नहीं होता तो उनको युद्ध करना पड़ता था समुद्रगुप्त केवल एक अच्छा श्रेष्ठ योद्धा ही नहीं था बल्कि वह कला और साहित्य प्रेमी भी था उसने वर्तमान कश्मीर और अफगानिस्तान के इलाकों पर भी विजय प्राप्त किया था।
5. राम गुप्त :- राम गुप्त के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है लेकिन ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि रामगुप्त , समुद्रगुप्त का जेष्ठ पुत्र था समुद्रगुप्त के पश्चात राम को को हि गुप्त साम्राज्य का पदभार दिया गया लेकिन शासन में योग्य न होने के कारण उसे सिंहासन से उतार दिया गया इसके बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुप्त साम्राज्य की सत्ता संभाली।
6. चंद्रगुप्त द्वितीय :- गुप्त लेखो के आधार पर अपने पुत्रों में से समुद्रगुप्त ने राजकुमार चंद्रगुप्त द्वितीय को अपना उत्तराधिकारी बनाया था चंद्रगुप्त द्वितीय इतिहास में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिनकी माता का नाम दत्ता देवी था चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने 375 ईस्वी में मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली उसने कदम्ब की राजकुमारी कुंतला से विवाह किया था
मौर्य साम्राज्य का शासन संभालने के बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार करना प्रारंभ किया और अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए चंद्रगुप्त द्वितीय मालवा , गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में किया उसने 395 ईसवी में अपने मुख्य शत्रु रूद्र सिंह तृतीय को पराजित किया और बंगाल पर अपना आधिपत्य स्थापित किया चंद्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य युद्ध से ज्यादा हिंदू संस्कृति , कला और ज्ञान के विकास के लिए जाना जाता है अपने काल में चंद्रगुप्त द्वितीय ने बुद्ध और जैन धर्म का प्रचार भी किया जिसके कारण उनके शासनकाल में बुद्ध कला का काफी विकास हुआ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल की विस्तृत जानकारी चीनी यात्री फाह्यान ने अपने लेखों में लिखी है जो चंद्रगुप्त के नवरत्नों में शामिल था महान कवि कालिदास चंद्रगुप्त के नवरत्नो में शामिल था जिन्होंने अपने कविताओं से पूरे भारत में प्रसिद्धि प्राप्त की।
7. कुमारगुप्त प्रथम :- चंद्रगुप्त द्वितीय के बाद उनके पुत्र कुमारगुप्त प्रथम को गुप्त साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया कुमार गुप्त प्रथम की माता का नाम महादेवी ध्रुवस्वामिनी था कुमारगुप्त को महेंद्रादित्य की उपाधि से सम्मानित किया गया था उसने 455 ईस्वी में गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला उसके शासन के अंत तक पुष्यमित्र अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था कुमारगुप्त प्रथम ने ही वर्तमान बिहार के नालंदा में एक बुद्ध विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था।
8. स्कन्दगुप्त :- कुमार गुप्त प्रथम के पुत्र स्कन्दगुप्त को महान गुप्त साम्राज्य का अंतिम शासक माना जाता है स्कन्दगुप्त को विक्रमादित्य और कर्मादित्य की उपाधि से नवाजा गया था ।
स्कन्दगुप्त ने पुष्यमित्र को पराजित कर दिया लेकिन इसके पश्चात उसका सामना श्वेतहुनो से हुआ स्कन्दगुप्त ने श्वेतहुनो का डटकर सामना किया और उन्हें एक हद तक रोके रखा लेकिन हुनो के साथ युद्ध के कारण उसे काफी धन और सेना की क्षति हुई 467 ईस्वी में स्कन्दगुप्त की मृत्यु हो गई इसके बाद उसके गोत्र भाई पुरू गुप्त ने गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला।
स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात साफ तौर पर गुप्त साम्राज्य का अंत हो चुका था लेकिन इसके पश्चात भी कुछ वर्षों तक पुरू गुप्त , बुद्ध गुप्त , नरसिंह गुप्त , कुमार गुप्त तृतीय , और विष्णुगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का शासन संभाला।
गुप्त साम्राज्य का अंतिम शासक बुद्धगुप्त को माना जाता है जिसने 495 ईस्वी तक गुप्त साम्राज्य पर राज किया।
गुप्त साम्राज्य का पतन :-
गुप्त साम्राज्य के पतन का तात्कालिक कारण स्कन्दगुप्त के बाद शासन करने वाले राजाओं में योग्यता एवं कुशलता का अभाव था। गुप्त वंश के प्रारम्भिक शासक अत्यन्त योग्य एवं शक्तिशाली थे। समुद्रगुप्त एवं उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘ विक्रमादित्य ‘ सम्पूर्ण विश्व को जीतने की आकांक्षा रखते थे। कुमारगुप्त प्रथम भी इतना योग्य था कि उन्होंने इस विशाल साम्राज्य को शत्रुओ से एवं बाहरी आक्रमणो से बचाए रखा। सम्राट स्कन्दगुप्त भी एक वीर एवं पराक्रमी योद्धा था जिसने पुष्यमित्र एवं हूण जैसे भयानक शत्रुओं को परास्त किया। परन्तु उसके बाद के गुप्त राजाओं में वीरता एवं कार्य – कुशलता की कमी थी। गुप्त राजकुमारों में आपसी वैमनस्य एवं द्वेष – भाव था।
कुछ राजकुमारों ने विभिन्न भागों में अपनी स्वतन्त्र सत्ता भी कायम कर ली तत्कालीन विक्षुब्ध राजनैतिक वातावरण सम्राट की वीरता , पराक्रम एवं कार्य – कुशलता की अपेक्षा करता था। परन्तु गुप्त शासकों में इन गुणों का अभाव था अत : साम्राज्य का विघटन अवश्यंभावी था। गुप्त प्रशासन का स्वरूप संघात्मक था। साम्राज्य में अनेक सामन्ती इकाइयाँ थीं । गुप्तकाल के सामन्तों में मौखरि , उत्तरगुप्त , परिव्राजक , सनकानीक , वर्मन् , मैत्रक आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।इन वंशों के शासक ‘ महाराज ‘ की उपाधि ग्रहण करते थे स्थानीय राजाओं तथा गणराज्यों को स्वतन्त्रता दी गयी थी गुप्त शासक अनेक छोटे-छोटे राजाओं का राजा होता था। सामन्त एवं प्रान्तीय शासक अपने – अपने क्षेत्रों में पर्याप्त स्वतन्त्रता का अनुभव करते थे।
प्रशासन की यह सामन्ती व्यवस्था कालान्तर में साम्राज्य की स्थिरता के लिये अभिशाप सिद्ध हुई। जब तक केन्द्रीय शासक शक्तिशाली रहे तब तक वे दबे रहे। परन्तु केन्द्रीय शक्ति के निर्बल होने पर अधीन राजाओं ने स्वतन्त्रता घोषित कर दी जिसके फलस्वरूप गुप्त – साम्राज्य का पतन हुआ। गुप्त प्रशासन में सभी ऊंचे – ऊंचे पद वंशानुगत होते थे । हरिषेण जो एक महादण्डनायक था , का पिता ध्रुवभूति भी इसी पद पर कार्य कर चुका था। चन्द्रगुप्त द्वितीय के सचिव वीरसेन के उदयगिरि गुहालेख से पता चलता है कि वह आनुवंशिक रूप से अपने पद का उपभोग कर रहा था करमदण्डा लेख से पता चलता है कि कुमारगुप्त का एक मंत्री पृथ्वी सेन भी अपने पिता के बाद इस पद पर नियुक्त हुआ।
ऐसी व्यवस्था के फलस्वरूप कभी – कभी अयोग्य व्यक्ति भी इन पदों पर नियुक्त हो जाते थे जिससे शासन – तन्त्र में शिथिलता आ जाती थी। ऐसे पदाधिकारियों की सफलता पूर्णतया सम्राट पर निर्भर करती थी। ऐसे समय में जब गुप्त प्रशासन निर्बल व्यक्तियों के हाथ में था तब ये पदाधिकारी अवश्य ही राज्य की एकता और स्थायित्व के लिये घातक सिद्ध हुए। गुप्त युग में प्रान्तीय शासकों एवं सामन्तों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे अपने – अपने प्रदेशों में वे सम्राट के समान ही सुख – सुविधाओं का उपभोग करते थे । वे ‘ महाराज ‘ की उपाधि धारण करते थे । सामन्तों को सेना रखने का अधिकार था तथा वे अपने अधिकार – क्षेत्र की जनता से कर वसूल करते थे।
लेकिन फिर भी सामान्य तौर से गुप्त साम्राज्य के पतन के लिये निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे :-
- अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी
- शासन – व्यवस्था का संघात्मक स्वरूप
- उच्च पदों का आनुवंशिक होना
- प्रान्तीय शासकों के विशेषाधिकार
- वाह्य आक्रमण
- बौद्ध धर्म का प्रभाव ।
इन सभी कारणों के अलावा गुप्त साम्राज्य के पतन का एक और कारण श्वेतहुनो का गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण था। श्वेतहुनो ने गुप्त साम्राज्य की कमर तोड़ दी थी स्वीट होने के कारण गुप्त साम्राज्य को अत्यधिक धन और सेना की क्षति हुई हुनो 585 ईस्वी में पूरी तरह से उत्तर-पश्चिम इलाकों को अपने कब्जे में कर लिया जिसके बाद गुप्त साम्राज्य का हमेशा के लिए पतन हो गया।