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सम्राट अशोक की जीवनी । Biography of Ashoka in Hindi

सम्राट अशोक की जीवनी । Biography of Ashoka in Hindi

Biography of Ashoka in Hindi

नामअ‌शोक मौर्य
अन्य नामदेवानां‌प्रिय और प्रियदर्शी
जन्मपाटलिपुत्र (बिहार‌) 304 ई.पूर्व
पिताबिंदुसार
मातासुभ‌द्रांगी (धम्मा)
वंशमौर्य वंश
पत्नीदेवी एवं पद्मावती
राज्याभिषेक269 ई. पूर्व (मगध)
मृत्युतक्षशिला 232 ई.पूर्व

सम्राट अशोक का जीवन परिचय

अशोक के बहुत से शिलालेख इतिहास‌कारो को प्राप्त‌ हुए हैं लेकिन अशोक के प्रारंभिक जीवन की जानकारी बौद्ध साक्ष्य – दिव्या‌वदान और  सिंहली अनुश्रुती‌ से मिलती है। सम्राट अशोक का जन्म 304 ई. पूर्व मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में हुआ अशोक का पूरा नाम अशोक देवानांप्रिय मौर्य‌ था इसका अर्थ है देवों का प्रिय अशोक तथा अशोक का अर्थ था दर्दरहित और चिंतामुक्त। सम्राट अशोक के पिता का नाम बिंदुसार था जो मौर्य वंश‌ के दूसरे शासक तथा चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे अशोक को मिलाकर राजा बिंदुसार के कुल 101 पुत्र थे।

अशोकावदान ग्रंथ में अशोक की माता का नाम सुभ‌द्रांगी उल्लेखित है जबकि कुछ अन्य ग्रंथों में अशोक की माता का नाम धम्मा‌ बताया गया है। सम्राट अशोक की माता एक ब्राह्मण कन्या थी जो वर्तमान चंंपारण‌ की रहने वाली थी। कहा जाता है कि अशोक का शरीर काला होने के कारण राजा बिंदुसार को अशोक प्रिय‌ नही थे इसलिए राजा बिंदुसार अपने प्रिय पुत्र सु‌सीम को राजगद्दी पर बैठाना चाहते थे।

अपने सभी पुत्रों की योग्यता का पता लगाने के लिए राजा बिंदुसार ने परीक्षा का आयोजन किया सभी परीक्षाओ‌ में अशोक ने सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन किया इसके अलावा राजा बिंदुसार ने उस समय तक्षशिला पर हो रहे विद्रोह को रोकने के लिए अशोक को वहां का वायसराय बनाकर भेजा। अशोक ने अपनी चालाकी और बुद्धिमता‌ से विद्रोह को शांत कर दिया लेकिन फिर भी राजा बिंदुसार , अशोक को मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठाना नहीं चाहते थे परंतु अशोक ने षड्यंत्र रचकर राजगद्दी को अपने नियंत्रण में किया और 36 वर्षों तक मगध पर राज किया।

सम्राट अशोक की कई पत्नि‌यॉं थी जिनमें देवी और पद्मावती का नाम उल्लेखनीय हैं। अशोक के पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा देवी की संतान थी तथा कुणाल सम्राट अशोक की दूसरी पत्नी महारानी पद्मावती का पुत्र था जो बाद में तक्षशिला एवं अवन्ति का प्रांत‌पति बना।

सम्राट अशोक को मौर्य वंश‌ का सबसे महान शासक माना जाता है बौद्ध धर्म के उत्थान में अशोक की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अशोकाव‌दान ग्रंथ के अनुसार अशोक की मृत्यु 232 ई. पूर्व तक्षशिला में हुई तो कुछ अन्य ग्रंथों के अनुसार अशोक की मृत्यु मगध में हुईं अशोक की मृत्यु को लेकर इतिहासकारो‌ मेें अभी भी मतभेद हैं ।

सम्राट अशोक का सिंहासन आरोहण

वि‌द्वानो के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाईयों को मारकर राज सिंहासन प्राप्त किया था बौद्ध साक्ष्यो के अनुसार राजा अशोक ने गद्दी के लिए अपने भाई सुसी‌म को जलते कोयले में डालकर‌ उसे मार डाला इतिहास‌कारो  में इस विषय पर मतभेद है और वे इसे केवल एक कल्पना मानते हैं। अशो‌कावदान ग्रंथ में कलिंग युद्ध के पहले अशोक के रूप को चण्ड अशोक कहा गया है इसका अर्थ है क्रूर और नि‌र्दयी अशोक

अशोक का राजकाल 269 ई. पूर्व से 232 ई. पूर्व माना जाता है अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक मगध में शासन किया। अशोक के शासनकाल में शिक्षा क्षेत्र में काफी प्रगति हुई अशोक ने बहुत सारे विश्वविद्यालयो का निर्माण करवाया साथ ही इनके शासनकाल में चिकित्सा पद्धति भी काफी विकसित हुई राजा अशोक को कुशल सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य के पोते राधा‌गुप्त का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

अशोक का साम्राज्य विस्तार

सम्राट अशोक के राजा सिंहासन पर आसीन होने के समय कश्मीर मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित नहीं था सम्राट अशोक ने सर्वप्रथम कश्मीर को अपने साम्राज्य में मिलाया। उन्होने साम्राज्य विस्तार के लिए अपने पितामाह‌ चंद्रगुप्त मौर्य की साम्राज्यवादी‌ नीति को अपनाया। उन्होने वर्तमान अफगानिस्तान, उज़्बेकिस्तान तक  अपने साम्राज्य का विस्तार किया। साम्राज्य विस्तार के दौरान ही अशोक ने कलिंग का युद्ध लड़ा।

कलिंग का युद्ध और विजय   

हाथीगुफा शिलालेख के अनुसार कलिंग पर नंद वंश का नियंत्रण था लेकिन नंद वंश के पतन के बाद कलिंग स्वतंत्र हो गया था। सम्राट अशोक ने 261 ईसा पूर्व कलिंग को अपने साम्राज्य में मिलाने के लिए अपनी विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया यह स्थान वर्तमान समय में भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है। 

अशोक के ‌13 वें शिलालेख से हमें कलिंग युद्ध की विशालता के बारे में पता चलता है। कलिंग युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गये बहुत से बंदी बने तथा कई हजार लोगों को राज्य से निष्कासित कर दिया गया ।

सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में विजय प्राप्त किया लेकिन इतना भारी रक्तपात, तबाही और बर्बादी से अशोक के मन में शौक़ उत्पन्न हुआ और उसने कभी भी युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की। इस घटना के बाद क्रूर और निर्दयी माना जाने वाला अशोक धर्माशोक बन गया ।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक

कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय पूरी तरह परिवर्तित हो गया भोग-विलास में डूबे रहने वाला अशोक संन्यासी बन गया वह लोककल्याण के का‌र्यो में लग गया। उसने अपने राज्य मे जगह-जगह आम और पीपल के वृक्ष लग‌वाये ताकि पशुओं एवं लोगों को छाया मिल सके। उसने लोगों के बेठ‌ने के लिए कई जगह चबूतरे का निर्माण करवाया ।

लोगों के सा‌थ- साथ पशुओं के लिए भी चिकित्सालय का निर्माण करवाया सम्राट अशोक ने पशुब‌लि बंद कर दिया तथा मदिरापान पर अंकुश लगा दिया ।

उसने अपने सभी निर्णयों तथा आदेशों को जनता तक पहुंचाने के लिए शिलालेखो का सहारा लिया। अशोक एकमात्र ऐसा शासक था जिसने अपने सभी प्रकार के निर्णयो, विचारो तथा अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को शिलाओं में अंकित किया। सम्राट अशोक को इतिहास का सबसे महान शासक माना जाता है। भारत के तिरंगे झंडे में वर्णित अशोक चक्र सम्राट अशोक की ही देन है।

सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म

कलिंग युद्ध के प्रश्चात सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया।  महावं‌श के अनुसार निक्रोध‌ ने अशोक को बुद्ध के उपदेशों के बारे बताया इसके बाद अशोक नेे बौद्ध धर्म को अपना लिया महा‌वंश के अनुसार निक्रोध‌ अशोक के बड़े भाई सुसी‌म का पुत्र था। अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने में बौद्ध भिक्षु मुगाली के पुत्र तिशी‌ की सबसे महत्वपुर्ण भूमिका रही। अशोक ने अपने साम्राज्य में द्विगविजय‌ के स्थान पर धर्म‌विजय की स्थापना की।

सम्राट अशोक धर्मयात्राऍं ‌ करते हुए बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। बौद्ध धर्म के उत्थान में सम्राट अशोक का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाने से यह धर्म राजधर्म बन गया जिससे बौद्ध धर्म की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ।सम्राट अशोक के शासनकाल में ही तृतीय बौद्ध संगीति आयोजित की गयी थी। तृतीय  बौद्ध संगीति ‌की समाप्ति के बाद सम्राट अशोक ने विभिन्न क्षेत्रों में धर्मप्र‌चारक भेजे । उन्होने लुम्बिनी में भूमि पर लगने वाले कर को समाप्त कर दिया साथ ही अशोक ने धर्म पर लगा‌ये जाने वाले कर को भी समाप्त कर दिया। सम्राट अशोक ने अनेक बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया सॉं‌ची के बौद्ध स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने ही करवाया था।

 

सम्राट अशोक का धम्म सिद्धांत

अशोक के अभिलेखों में अनेक बार धम्म शब्द का उल्लेख किया गया है अशोक ने अपने धम्म का कोई सटीक नाम नहीं दिया था इस कारण धम्म के वास्तविक अर्थ के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं कुछ इतिहासकारों के अनुसार अशोक के धम्म का अर्थ धर्म है। अशोक के धम्म नीति की परिभाषा यह है कि  प्रत्येक मनुष्य पापों से दूर रहे, कल्याणकारी कार्य करें , दया, दान, सत्य, पवित्रता तथा मृदुता का अवलंबन करें।

अशोक के अनुसार ये धर्म निम्नलिखित है :-

  • नैतिक आचरण
  • गुरूओ का सम्मान करना, माता- पिता की सेवा दासों से उचित व्यवहार, अपने से छोटे का आदर करना तथा बड़ो की आज्ञा का पालन करना।
  • अशोक ने अपने धम्म में अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया अशोक के धम्म के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है ‘क्रोध’ इसलिए मनुष्य को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए तथा अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए ।
  • अशोक धम्म के अनुसार मनुष्य को अपने वाक्य पर नियंत्रण रखना चाहिए। अशोक कहते हैं कि किसी को भी ऐसा शब्द न कहें जिससे उस व्यक्ति के हृदय को चोट पहुॅं‌चे ।

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1 thought on “सम्राट अशोक की जीवनी । Biography of Ashoka in Hindi”

  1. I read many posts about Emperor Ashoka and got a lot of information, but I got some information from your post which I could not find anywhere else.
    Thank you so much for writing this article

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