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History of Maharana Pratap in Hindi | महाराणा प्रताप की जीवनी और इतिहास

History of Maharana Pratap in Hindi | महाराणा प्रताप की जीवनी और इतिहास

महाराणा प्रताप की जीवनी एवं इतिहास : परम प्रतापी , प्रचंड शक्तिशाली , परम पराक्रमी शासक जिन्होंने मुगल साम्राज्य की नींव को हिला डाला था तथा सिसोदिया वंश के सबसे महान शासक महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई 1540 को वर्तमान राजस्थान राज्य के मेवाड़ प्रान्त में हुआ था ।

महाराणा प्रताप की वीरता, उनकी अपार शक्ति और साहस को पूरी दुनिया आज भी सलाम करती है महाराणा प्रताप की इसी वीरता , निर्भयता और शक्ति के कारण उन्हें भारतीय इतिहास का सबसे शक्तिशाली राजपूत योद्धा भी माना जाता है महाराणा प्रताप की वीरता और साहस के बारे में हम जितना भी कहे कम है महाराणा प्रताप एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा के साथ-साथ एक कुशल शासक भी थे जो सभी को साथ लेकर चलना पसंद करते थे ।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको महाराणा प्रताप के इतिहास एवं उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं अगर आप महाराणा प्रताप की जीवन की घटनाओं से जुड़ी सभी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें क्योंकि इस आर्टिकल को हमने बहुत ही सहज भाषा में आपके लिए उपलब्ध किया है ताकि आपको इस आर्टिकल को पढ़ने में बोरिंग ना लगे और आप सहज भाषा में इसे समझ पाए ।

History of Maharana Pratap in Hindi

जन्म9 म‌ई 1540 उदयपुर (राजस्थान)
पिताउदय सिंह द्वितीय
माताजैवन्ती बाई
पत्निअजबदे बाई
संतान17 पुत्र तथा 5 पुत्रियां
भाईशक्ति सिंह, जगमाल सिंह, कुंवर विक्रमादेव
मृत्यु29 जनवरी 1597 छावंद (राजस्थान)

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय व इतिहास ( History of Maharana Pratap in Hindi )

महाराणा प्रताप का जन्म 9 म‌ई 1540 को राजस्थान के उदयपुर के कुम्भलगड़ किले में हुआ इनके पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय था जो मेबाड़ के महाराज थे इनकी माता का नाम जैवन्ती बाई थी। महाराणा प्रताप के कुल 24 भाई थे साथ ही उनकी कई बहनें भी थी महाराणा प्रताप ने शास्त्र कला की शिक्षा प्राप्त की ही इसके साथ ही उन्होंने युद्ध विद्या में भी महारत हासिल किया था |

महाराणा प्रताप राजा उदय सिंह दतिया के जेष्ठ पुत्र थे इसकी वजह से राजगद्दी के हकदार महाराणा प्रताप थे लेकिन राजा उदय सिंह द्वितीय को महाराणा प्रताप प्रिय नहीं थे जिसके कारण वे महाराणा प्रताप को राजगद्दी पर बैठाना नहीं चाहते थे उन्होंने महाराणा प्रताप के छोटे भाई जगमाल सिंह को राजगद्दी पर बैठाया लेकिन साम्राज्य के सभी मंत्री गण उदय सिंह द्वितीय के इस फैसले से खुश नहीं थे ।

उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद जगमल को राजगद्दी से हटा दिया गया और उनके स्थान पर महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासक बनाया गया महाराणा प्रताप 1572 में मेवाड़ के 54वें शासक बने उनका मुख्य लक्ष्य था ‘मुगल शासन से आजादी’ महाराणा प्रताप को राजपूतों का सबसे महान शासक माना जाता है इतिहास भी इसकी गवाह है महाराणा प्रताप ने अपनी वीरता से चारों दिशाओं में अपना परचम लहराया ।

7.5 फुट लंबा महाराणा प्रताप जब अपने 72 किलोग्राम 81 किलोग्राम के भाले के साथ युद्ध के मैदान में उतरता था तो दुश्मन थर थर कापता था महाराणा प्रताप इतने शक्तिशाली थे वे अपने एक कि बार से अपने दुश्मन को खत्म करने की क्षमता रखते थे ।

महाराणा प्रताप की की इसी शक्ति के कारण मुगल सम्राट अकबर भी उनसे डरता था यही कारण है कि सम्राट अकबर ने कभी भी महाराणा प्रताप के साथ युद्ध नहीं किया ।

महाराणा प्रताप का इतिहास

History of Maharana Pratap in Hindi महाराणा प्रताप एक कुशल सम्राट और साहसी योद्धा थे उन्होंने मुगलों के सामने नतमस्तक होकर शासन करने से मना कर दिया वे चाहते थे कि भारत को मुगल साम्राज्य से आजादी मिले। लेकिन महाराणा प्रताप को छोड़कर सभी राजपूत सम्राट मुगल शासक अकबर के मित्र बन गये लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी हार नहीं मानी मुगल सम्राट अकबर महाराणा प्रताप से समझौता करना चाहते थे लेकिन वो कहते हैं न कि सच्चे राजपूत किसी के सामने सर नहीं झुकाते महाराणा प्रताप ने अकबर से समझौता करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 1576 को हल्दीघाटी का भयंकर युद्ध हुआ।

18 जून 1576 को मुगल सेनाओं ने हल्दीघाटी के गोमुंदा जो वर्तमान में राजस्थान में है में महाराणा प्रताप की सेना पर हमला कर दिया मुगलों की सेना बहुत ज्यादा तादाद में थी जबकि महाराणा प्रताप की सेना बहुत कम थी इसलिए उन्हें मैदान छोड़कर भागना पड़ा इस समय उनके घोड़े ‘चेतक’ ने असाधारण वीरता दिखाते हुए महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी । 

हल्दीघाटी का युद्ध मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध था जो इतिहास में गीतो, चित्रों और लूटवार्ता द्वारा अमर हो गई यह भी माना जाता है कि महाराणा प्रताप शारीरिक तौर पर बहुत ही ज्यादा ताकतवर थे क्योंकि उनके कवच का वजन 72 किलोग्राम का था जबकि उनके भाला का वजन 81 किलोग्राम था। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप 203 किलो वजन लेकर युद्ध करते थे महाराणा प्रताप इतने शक्तिशाली थे कि वे अपने एक ही बार से किसी भी इंसान के दो टुकड़े कर सकते थे।

महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप के जीवन का सबसे बड़ा एवं सबसे निर्णायक युद्ध था हल्दीघाटी के युद्ध को भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध भी माना जाता है क्योंकि यह युद्ध एक साहसी एवं वीर योद्धा की निडरता और निर्भयता का परिचय देता है हल्दीघाटी का यह युद्ध मेवाड़ के प्रतापी राजा महाराणा प्रताप एवं मुगल वंश के शासक सम्राट अकबर के बीच हुआ था ।

अगर हम हल्दीघाटी युद्ध के कारण की बात करें तो इस युद्ध का सबसे बड़ा एवं एकमात्र कारण महाराणा प्रताप द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार ना करना था । मुगल सम्राट अकबर चाहता था कि सभी राजपूत शासक अपने अपने क्षेत्र को मुगल साम्राज्य में ही मिला दे तथा उन्हीं के अधीन अपना शासन चलाएं लेकिन महाराणा प्रताप को यह बात स्वीकार नहीं थी वह स्वतंत्र शासन करना चाहते थे उनका कहना था कि हम मुगलों की गुलामी कभी नहीं करेंगे चाहे हमें प्राण ही क्यों न त्यागने पड़े ।

सम्राट अकबर ने कई बार महाराणा प्रताप को अपना संदीप प्रस्ताव भेजा लेकिन हर बार महाराणा प्रताप ने अकबर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसके कारण सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप के शासनाधीन क्षेत्र मेवाड़ को युद्ध के द्वारा अपने साम्राज्य के अधीन करने का निर्णय लिया इसी के फलस्वरूप हल्दीघाटी का युद्ध हुआ ।

18 जून 1576 को मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं ने राजस्थान के अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी मैदान में महाराणा प्रताप की सेनाओं पर हमला कर दिया दोनों पक्षों के बीच यह भीषण युद्ध केवल 4 घंटे तक चला था ।

इस युद्ध में सम्राट अकबर की सेना का नेतृत्व आमिर के साथ सलमान सिंह प्रथम ने किया था तथा दूसरी और महाराणा प्रताप किस सेना का नेतृत्व स्वयं महाराणा प्रताप ने किया था लेकिन महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खान सूर ने भी हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

ऐसा माना जाता है कि जब मुगल सेनाओं ने महाराणा प्रताप की सेनाओं पर हमला किया तो हकीम खान सूर की एक सैनिक टुकड़ी ने ही अकबर की सेना का सर्वप्रथम सामना किया ।

आपकी जानकारी के लिए हम आपको बताना चाहेंगे कि इस युद्ध में सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप के साथ युद्ध नहीं किया था ।

हल्दीघाटी के मैदान में लगातार 4 घंटे तक हुए इस युद्ध का परिणाम यह निकला कि इस युद्ध में दोनों पक्षों के लगभग 490 सैनिक मारे गए हल्दीघाटी के युद्ध में भले ही महाराणा प्रताप को हार का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने सम्राट अकबर की इतनी बड़ी सेना का सामना अपनी एक छोटी सी सैनिको टुकड़ी के साथ किया जिसके कारण हल्दीघाटी के युद्ध में उनकी वीरता का परिचय आज भी दिया जाता है ।

पढ़िए :- हल्दीघाटी युद्ध का संपूर्ण इतिहास

महाराणा प्रताप की पत्नी एवं उनके संतान

महाराणा प्रताप की शादी 1557 ई. में विजोलिया के सावंत रामराग पंवार की पुत्री अजब्दे पंवार से हुई थी उस समय महाराणा प्रताप की उम्र 17 वर्ष एवं अजब्दे पंवार की उम्र 15 वर्ष थी। महारानी अजब्दे महाराणा प्रताप की प्रथम पत्नी थी महारानी अजब्दे के अलावा महाराणा प्रताप की 10 और पत्नियां थी महाराणा प्रताप के 11 पत्नियां 17 पुत्र तथा 5 पुत्रियां थी लेकिन अधिकतर पुरानो एवं लेखों में महाराणा प्रताप के केवल एक संतान अमर सिंह प्रथम का ही उल्लेख किया गया है।

महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां इस प्रकार है –

  1. अजब्दे पंवार
  2. सोलंकीनीपुर बाई
  3. चंपाबाई झाला
  4. जसोबाई चौहान
  5. फूलकंवर राठौड़
  6. शाहमति बाई हाडा
  7. आलमदे बाई चौहान
  8. अमरा बाई राठौड़,
  9. लखा बाई
  10. रत्नावती बाई पंवार
  11. आशाबाई खिंचड़

महाराणा प्रताप के संतान :- 

अमर सिंह प्रथम एवं भगवान दास अजब्दे पंवार के पुत्र थे। अमर सिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुुत्र-पुत्रियों में सबसे ज्येष्ठ थे। साशा बाई और गोपाल सिंह महारानी सोलंकीनी के संतान थे। कल्ला सिंह, रनवाल दास एवं दुर्जन सिंह महारानी चंपा बाई की संतान थी जबकि कल्याण दास जसोबाई चौहान की चंदा सिंह एवं शिखा सिंह महारानी फूल कंवर की पूरा सिंह महारानी शाहमति बाई की जसवंत सिंह महारानी आलमदे बाई की नत्था सिंह महारानी अमरा बाई की, रायभाना सिंह लखाबाई की, माल सिंह, गज सिंह और क्लिंगू सिंह महारानी रत्नावती की तथा हत्थी सिंह और राम सिंह महारानी आशाबाई खिंचड़ की संतान थी ।

महाराणा प्रताप के आखिरी दिन

हल्दी घाटी युद्ध के प्रश्चात महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के क‌ई साल जंगलों में बिताएं हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने उन्होंने अपने साम्राज्य और सेना को भी गंवा दिया लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अकबर के विरुद्ध अपना युद्ध अभियान जारी रखा । सन् 1586 ई. में उन्होंने पुनः अपनी एक नई सेना का गठन किया और इसके बाद उन्होंने उदयपुर, मांडलगढ़, कुंभलगढ़ आदि क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया महाराणा प्रताप के लिए सबसे दुख की बात यह थी कि वह चित्तौड़ को अपने कब्जे में नहीं कर पाए चित्र राज्य को अपने कब्जे में करने के लिए महाराणा प्रताप ने युद्ध किया ।

उन्होंने अपने आखिरी दिनों में भी अपना संघर्ष जारी रखा जिसके बाद 19 जनवरी 1597 को 57 वर्ष की आयु में चावंड राजधानी में धनुष की डोर खींचते समय प्रताप के आंत में एक चोट लगी, जिसके कारण इनकी मृत्यु हो गई।

महाराणा प्रताप की महानता एवं वीरता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई तो उनके मृत्यु की खबर सुनकर उनके सबसे बड़े शत्रु मुगल सम्राट अकबर के भी आंखों से आंसू आ गए थे ।

क्यो हुए महाराणा प्रताप इतने प्रसिद्ध ?

महाराणा प्रताप को इतिहास के सबसे महान, साहसी एवं प्रसिद्ध शासकों में से एक माना जाता है वे सबसे महान राजपूत शासकों में से एक थे उनकी प्रसिद्धि का सबसे महत्वपूर्ण कारण उनका साहस और उनकी वीरता थी वह एक महान सम्राट, कुशल शासक और साहसी योद्धा थे महाराणा प्रताप मुगलों के पैरों तले शासन नहीं करना चाहते थे ।

महान सम्राट अकबर ने उन्हें कई बार समझौते के लिए कहा लेकिन उन्होंने समझौता करने से मना कर दिया वे चाहते थे कि भारत को मुगल शासन से आजादी मिले वे अंत तक मुगलों के साथ लड़ते रहे लेकिन उन्होंने कभी भी मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। उनकी प्रसिद्धि का एक और कारण है हल्दीघाटी का युद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में भले ही उन्होंने विजय नही प्राप्त किया लेकिन उन्होंने अपने कुछ सेनिको के साथ ही अकबर की विशाल सेना का सामना किया महाराणा प्रताप इतने शक्तिशाली राजपूत थे कि वे अकेले ही 100 दुश्मनों को मारने की शक्ति रखते थे।

महाराणा प्रताप को किसने मारा ?

महाराणा प्रताप एक निडर शासक और साहसी एवं बलवान योद्धा थे जिसके कारण कोई भी उनसे शत्रुता नही करता था मुग़ल शासक अकबर ने उन्हें भले ही पराजित किया था लेकिन वे महाराणा प्रताप को मार न सके। उनकी मृत्यु के बारे में कहा जाता शिकार करने के दौरान एक घटना में उनकी मृत्यु हुई। 

महराणा‌ प्रताप की मृत्यु कैसे हुई ?

29 जनवरी सन् 1597 को राजस्थान के छावंद में शिकार करने के दौरान एक घटना में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।

महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनकी राजगद्दी का क्या हुआ ?

महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनकी राजगद्दी उनके पुत्र अमर सिंह प्रथम ने संभाली लेकिन अमर सिंह प्रथम महाराणा प्रताप के समान ताकतवर और साहसी नहीं थे अमर सिंह प्रथम महारानी अजब्दे के पुत्र थे उन्होंने सन् 1615 में मुगल सम्राट जहांगीर के सामने हथियार डाल दिए इसके साथ ही मेवाड़ में राजपूतों का शासन समाप्त हो गया ।

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