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Biography of Mahatma Buddha in Hindi । महात्मा गौतम बुद्ध की जीवनी

महात्मा बुद्ध एक प्रसिद्ध धर्म सुधारक एवं महान दार्शनिक थे जिन्होंने एक नये धर्म बौद्ध धर्म की स्थापना की और लोगों के मन में एक नई और श्रेष्ठ दार्शनिक विचारधारा पैदा की भगवान महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का आठवां अवतार भी माना जाता हैं महात्मा बुद्ध के जीवन की सभी घटनाओं का वर्णन विभिन्न बौद्ध ग्रंथों जैसे – बुद्धचरित महावस्तु, सुत्तनिपात, ललितविस्तर, त्रिपटक आदि में किया गया है ।

लेकिन इन सभी ग्रंथों में त्रिपिटक जो बौद्ध धर्म का सबसे प्रमुख ग्रंथ है इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी प्रत्येक घटना का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है इन्हीं सभी ग्रंथों एवं विभिन्न जगहों से इकट्ठा की गई जानकारी के माध्यम से हमने इस आर्टिकल में महात्मा बुद्ध की संपूर्ण जीवनी तथा उनके जीवन से जुड़ी सभी प्रमुख घटनाओं एवं उनकी शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन किया है ।

Mahatma Buddha ki Jivni

Table of Contents

Biography of Mahatma Buddha in Hindi । महात्मा गौतम बुद्ध की जीवनी

जन्म कपिलवस्तु (लुम्बिनी) 563 ई. पूर्व
पिताशुद्धोधन
मातामाहा माया
पत्नीयशोधरा
पुत्रराहुल
भाईदेवदत्त
ज्ञानप्राप्तिबोधगया (बिहार)
महापरिनिर्वाणकुशीनगर (उत्तरप्रदेश) 483 ई. पूर्व
अन्य नामसिद्धार्थ, गोतम बुद्ध, शाक्य मुनि

महात्मा गौतम बुद्ध का संपूर्ण जीवन परिचय ( Complete Biography Of Mahatma Buddha in Hindi )

गौतम बुद्ध का जन्म 

महात्मा बुद्ध का जन्म ईसा से करीब 563 वर्ष पूर्व नेपाल के कपिलवस्तु गणराज्य के राजकुल‌ में हुआ था। महारनी‌ मायादेवी जब अपने नैहर‌ देवदह‌ जा रही तो रास्ते में लुम्बिनी‌ वन में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ यह स्थान नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह‌‌ के बीच नोतनवा‌ स्टेशन से 8 मील दूर रूक्मिणदेई‌ नामक स्थान पर आता है। जहां एक लुम्बिनी‌ नाम‌ का वन था। इनका जन्म लुम्बिनी नामक वन में दो साल वृक्षों के बीच हुआ।

महात्मा गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था महात्मा बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था जो हिमालय के पास स्थित कोशाला साम्राज्य के राजा थे तथा अपने शाक्य कूल के प्रमुख थे।

सिद्धार्थ की माता का नाम माहामाया था। सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन ही उनके माता का देहांत हो गया इसके बाद सिद्धार्थ का लालन-पालन उनकी मोसी प्रजापति गौतमी ने की। 

सिद्धार्थ के जन्म के पश्चात उनका नामकरण करने के लिए ऋषि- मुनियो को बुलाया गया बुद्ध की जन्मकुंडली देखकर ऋषियों ने कहा की आपका बेटा अत्यंत तेजस्वी होगा ये या तो एक महान राजा होगा जो समस्त दुनिया पर विजय प्राप्त करेगा या एक महान संन्यासी होगा जो अपने ज्ञान से इस संपूर्ण सृष्टि को प्रकाशित करेगा।

ऋषियों ने कहा कि इसे किसी भी प्रकार के कष्ट या दुख का आभास न हो नहीं तो इसका मन वैराग्य की ओर चला जाएगा।

राजा शुद्धोधन चाहते थे कि उनका बेटा सम्राट बने और पूरी दुनिया पर राज करे इसलिए राजा शुद्धोधन ने बुद्ध के रहने के लिए तीन प्रमुख ऋतुओं के समान तीन महल बनवाया ताकि उन्हें किसी भी प्रकार के दुख या कष्ट का ‌आभास ना हो उन्हें पुरी दुनिया से अलग रखा गया तथा उनकी देखभाल के लिए उनके महल में दास-दासियां‌ रख दिया गया। 

गौतम बुद्ध की शिक्षा

महात्मा बुद्ध ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुरु विश्वामित्र से प्राप्त की उन्होंने अपने गुरु विश्वामित्र से वेद एवं उपनिषद् की शिक्षा प्राप्त की वेद और उपनिषद के साथ ही उन्होंने युद्ध विद्या और राजकाज की भी शिक्षा ग्रहण की उन्होंने घुड़दौड़ तलवारबाजी, कुश्ती, तीर – कमान की भी शिक्षा प्राप्त की घुड़दौड़, तलवारबाजी, कुश्ती तीर – कमान और रथ हॉकने में कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर पाता था ।

महात्मा गौतम बुद्ध का विवाह 

16 वर्ष की आयु में ही सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया वे अपनी पत्नी यशोधरा के बाद पिता के द्वारा बनाए गए ऋतुओं के अनुरूप एवं भोग-विलास से संपन्न महल में रहने लगे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा गया लेकिन फिर भी सांसारिक मोहमाया उन्हें सांसारिक बंधनों में बांधकर नहीं रख सका और उनका मन वैराग्य की और चला गया और अपने परिवार का त्याग कर वे स्तरीय के ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

महात्मा गौतम बुद्ध का गृहत्याग 

वे चार कारण जिनके कारण महात्मा बुद्ध ने सन्यासी बनने का निर्णय लिया :- एक दिन रास्ते में अपने रथ से चार दृश्यो का गोतम बुद्ध के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

ये दृश्य थे – एक वृद्ध, एक मृतक, एक रोगी और एक संन्यासी को देखना।

वृद्ध,रोगी और मृतक को देखकर उन्हें यह अनुभूति हुई कि मनुष्य के शरीर का क्षय ओर अंत निश्चित है।

इसके बाद उन्होंने एक संन्यासी को देखा उसे बुढ़ापे और बीमारी जैसी कोई परेशानी नहीं थी और उसने शांति को प्राप्त कर लिया था सिद्धार्थ ने भी निश्चय किया कि वे भी संन्यास मार्ग को अपनाएंगे। 

इसके कुछ समय प्रश्चात ही 29 वर्ष की आयु में एक रात वे गृहत्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। इस घटना को बोद्ध‌ ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण नाम दिया गया। उन्होंने वैशाली के अलार‌ कलाम‌ को‌ अपना‌ प्रथम गुरु स्वीकार किया और उनसे सांख मत की शिक्षा ली फिर भी उन्हें शांति प्राप्त नहीं हुआ।

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महात्मा गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति 

घर त्याग के प्रश्चात उन्होंने अपने पहले अध्यात्मिक गुरु आलार कलाम से संन्यास कला में शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद उन्होंने तपस्या करना आरंभ किया पहले उन्होने चावल और पानी पीकर साधना आरंभ किया कुछ दिनों के बाद उन्होंने अन्न-‌जल त्याग दिया और साधना करने लगे। 

6 वर्षों तक उन्होंने कठोर साधना की फिर भी उन्हें ज्ञान की प्राप्त नहीं हुई। इस दौरान उनका शरीर जर्जर हो गया था। उन्हें यह आभास हुआ कि शरीर को इस प्रकार कष्ट देकर उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।

अब वह मध्यम का रास्ता ढूंढने लगे एक रात उन्होंने सुजाता नाम की एक गांव की लड़की के हाथो खीर खाकर अपना उपवास तोड़ा इसके बाद नहाकर साफ- सुतरे होकर एक बड़े से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान-योग में बैठ गये और उन्होंने यह निश्चय किया कि जब तक उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो जाएं तब तक वे अपने साधना में लीन रहेंगे। इसके सातवें दिन प्रश्चात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई इसके बाद सिद्धार्थ बुद्ध कहलाएं उन्हें जहां ज्ञान की प्राप्ति हुई वह स्थान बोधगया कहलाया जो वर्तमान में भारत के बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है तथा जिस पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई वह वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाएं।

महात्मा गौतम बुद्ध का प्रथम उपदेश 

ज्ञान प्राप्ति के प्रश्चात उन्होंने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को दिया जो उरवेला में बुद्ध का साथ छोड़कर चले गए थे। इसके बाद वे सभी ब्राह्मण उनके अनुयायी बन गये । इस घटना को बुद्ध ग्रंथो में धर्मचक्र-‌प्रवर्तन कहा गया है। इस घटना के बाद महात्मा बुद्ध भगवान ब्रह्मदेव की आज्ञा से अपने धर्म प्रचार में लग गये‌ ‌। 

महात्मा गौतम बुद्ध के प्रमुख के उपदेश एवं शिक्षाऍं

महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य का प्रतिपादन किया उनके द्वारा प्रतिपादित आर्य सत्यो को’चत्वारि आर्य सत्यानि’ कहते हैं ।

ये चार आर्य सत्य है –

1. दुःख :- महात्मा बुद्ध के अनुसार सृष्टि के प्रत्येक प्राणी को दुःख है। दुःख का कारण जन्म है।

2. दुःख समुदाय :- बुद्ध ने दुःख के समुदाय कारण इच्छा को बताया है। इच्छा लालसा के साथ मिलकर मनुष्य को पुनः पुनः जन्म-मरण के चक्र में डाल देती हैं।

मनुष्य वासना तथा अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए छटपटाने लगता है इसके कारण कभी उसके मन में शांति नहीं रहता है यही दुःख का कारण है।

3. दुःख निरोध :- इच्छा के त्याग से मनुष्य इनसे मुक्ति पा सकता है जब दुःखो का अंत हो जाता है तो मनुष्य को परमानंद की प्राप्ति होती है।

4. अष्टांग मार्ग :- महात्मा बुद्ध ने तृष्णाओ‌ के दमन एवं मौक्ष प्राप्ति के लिए अष्ट मार्गों का प्रतिपादन किया । महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित इन अष्ट सिद्धांतों को अष्टांगिक मार्ग भी कहा गया ।

महात्मा बुद्ध के ये अष्टांग मार्ग है –

  1. स्मयक् दृष्टि
  2. स्मयक् संकल्प‌
  3. स्मयक् वाक्य्‌ 
  4. स्मयक्‌ कर्मान्त‌ 
  5. स्मयक्‌ आजीविका 
  6. स्मयक्‌ व्यायाम
  7. स्मयक्‌ ध्यान  और 
  8. स्मयक्‌ समाधि

भगवान गौतम बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई ?  

कुछ बोद्धग्रंथो‌ के अनुसार वे 80 वर्ष की अवस्था में पावापुरी होते हुए कुशीनगर पहुंचे जहां कुन्ना नाम के एक व्यक्ति ने बुद्ध और उनके शिष्यों को एक दिन दोपहर में उन्हें दावत पर बुलाया उसने खाने के लिए उन सभी को खीर, चावल और रोटी दिया था । 

बुद्ध को यह ज्ञात हो गया था खीर जहरीला है इसलिए खीर महात्मा बुद्ध ने खाया और सभी शिष्यों को कहा कि तुम सभी चावल और रोटी खाओ, खीर सिर्फ में खाऊंगा इसके बाद बुद्ध ने थोड़ा खीर खाकर बचे हुए खीर को जमीन के नीचे गड़वा दिया इसके बाद बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुशीमारा ‌चल दिए रास्ते में जातें-जाते‌ अचानक महात्मा बुद्ध को  बहुत‌ प‌सीना आने लगा और उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गया ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌इससे शिष्यों को यह समझ आ गया कि भगवान बुद्ध ने जो खीर खाया वह जहरीला था जो शायद कुन्ना को भी नहीं मालूम था‌। 

बुद्ध ने अपने सबसे प्रिय शिष्य आनंद से कहा आनंद इस संधारी के चारतह‌ करके बिठाओ में बहुत थक गया हूं लेटूॅंगा‌ । इसके बाद उन्होंने कहा कि आनंद मेरे लिए कुकुत्था‌ नदी से पानी लेकर आओ इसके बाद बुद्ध ने कुकुत्था‌ नदी में स्नान किया और वहीं रेत पर चीर बिछाकर लेट गये‌ कुछ देर आराम करने के बाद अब वह चलने लगे रास्ते में उन्होंने हिरण्यकश्यप नदी पार की और अंत में वे कुशीमारा‌ पहुंचे।

इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि मेरा जन्म दो साल वृक्षों के मध्य हुआ था अतः मेरा अंत भी दो साल वृक्षों के मध्य होगा अब मेरा अंतिम समय आ गया है आनंद को बहुत दुःख हुआ वे रोने लगे बुद्ध को जब पता चला तो उन्होंने आनंद को बुलाया और कहा रोते क्यों हो मैंने तुमसे पहले ही कहा था जो चीज उत्पन्न हुई है उसका अंत निश्चित है। निर्वाण अनिवार्य ओर स्वाभाविक है अतः रोते क्यों हो। महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा मेरे मरने के बाद मुझे गुरु मानकर मत चलना ।

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद की घटना

बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राहुल भी भिक्षु हो गये ‌थे परंतु बुद्ध ने उसे कोई महत्व प्राप्त नही होने दिया इसके कुछ समय प्रश्चात‌ राहुल का भी निधन हो गया।बुद्ध की पत्नी यशोधरा अंत तक महात्मा बुद्ध की शिष्या नहीं बनी ।

बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के बाद छह दिनों तक लोग उनके दर्शन के लिए आते रहें सातवें दिन उनके शव को जलाया गया फिर उनके अवशेषों पर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों ओर वैशाली के बिच्छविदो‌ आदि में भयंकर झगड़ा हुआ जब झगड़ा शांत हुआ तो द्रोण नामक ब्राह्मण ने समझोता करवाया कि अवशेष आठ भागों में बांट लिए जाएं ऐसा ही हुआ आठ स्तूप आठ राज्यों में बनाकर अवशेष रखें गये।

बताया जाता है कि बाद में सम्राट अशोक ने उन्हें निकलवाकर‌ 1400 स्तूपो‌ में बांट दिया था। बुद्ध के निर्वाण‌ की घटना को बोद्ध‌ ग्रंथों में महापरिनिर्वाण कहा गया।जिसका अर्थ होता है दीपक का बुझ जाना अर्थात अपने सभी कर्मों और जीवन-मरन‌ के संबंधों से मुक्ति। कुछ मान्यताओं के अनुसार उनका‌ निर्वाण‌ जहरीले खीर के कारण नहीं हुआ था बल्कि जब उन्हें लगा कि उनके शिष्य अब इस ज्ञान को आगे बढ़ाने में सक्षम हो गये‌ है और अब उनके जाने का सही समय हो गया है तब उन्होंने अपनी मर्जी से परिनिर्वाण ले लिया।

भगवान महात्मा बुद्ध के अंतिम शब्द -‌ ‌है भिक्षुको‌ इस समय आज तुमसे इतना कहता हूं कि जितने भी संस्कार है सबका नास होने वाला है। इसलिए प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो।

महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात

बुद्ध के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका जन्म बैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी बैशाख पूर्णिमा के दिन हुई उन्होंने परिनिर्वाण भी बैशाख पूर्णिमा के दिन प्राप्त किया।

महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग अपनाने के पीछे की कहानी :- एक दिन कुछ नृत्यांगना रास्ते में जा रही थी एक नृत्यांगना ने अचानक कहा कि वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो‌ नहीं तो स्वर‌ अच्छा नहीं निकलेगा और इसे इतना भी मत कसो कि यह टूट जाएं यह बात सामने ध्यान कर रहें बुद्ध को भा गया और उन्होंने यह निश्चय किया कि वो मध्यम मार्ग को अपनाएंगे।

महात्मा गौतम बुद्ध से जुड़े पूछें जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न ( FAQ Related to Mahatma Buddha Ki Jivni )

महात्मा गौतम बुद्ध के अनुसार संसार में दुख का सबसे बड़ा कारण क्या है ?

उत्तर :- महात्मा गौतम बुद्ध के अनुसार इस संसार में लोगों दुख का सबसे बड़ा कारण उनकी इच्छाएं अर्थात लालसा और लोभ है जिसे दूसरे शब्दों में तृष्णा भी कहते हैं अर्थात किसी भी चीज को पाने की लालसा हमारे दुःख का सबसे बड़ा कारण है महात्मा बुद्ध कहते थे कि अगर इच्छाओं को मार दिया जाए तो इंसान के दुख का कोई कारण ही नहीं बचेगा।

गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई थी ?

उत्तर :- वर्तमान बिहार में गया के निकट पीपल के वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिस जगह पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उस जगह को वर्तमान बोधगया कहा जाता है और जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे बोधि वृक्ष कहा जाता है जब महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी आयु 35 वर्ष थी ।

महात्मा गौतम बुद्ध के गुरु कौन थे ?

उत्तर :- महात्मा बुद्ध के अलग-अलग शिक्षा में उनके अलग-अलग गुरुओं का योगदान है जिनमें से आचार्य सब्बमित्त महात्मा बुध के बचपन के गुरु थे जबकि गुरु विश्वामित्र ने उन्हें वेद एवं उपनिषदों की शिक्षा दी लेकिन आलार कलाम को उनका सबसे प्रमुख गुरु माना जाता है क्योंकि उन्होंने ही महात्मा बुद्ध को सन्यास कला की शिक्षा दी इसी कारण आलार कलाम को महात्मा बुध का प्रथम गुरु भी माना जाता है।

किसे द्वितीय बुद्ध कहा जाता है ?

उत्तर :- पद्मसंभव को द्वितीय बुद्ध कहा जाता है।

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