पानीपत का युद्ध । Battle of Panipath in hindi
हेलो दोस्तो स्वागत आपका हमारे ब्लॉग साइट www.gyan-ganga.com में हम इस ब्लॉग के माध्यम से सामान्य ज्ञान एवं इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाते है । आज हम आपको पानीपत के युद्ध के बारे में उपलब्ध करवा रहे हैं इस पोस्ट में पानीपत के तीनो युद्धो का विस्तार से वर्णन किया गया है इसलिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर देखें ।
पानीपत का प्रथम युद्ध – 21 अप्रैल 1526
पानीपत का प्रथम युद्ध मुगल वंश के संस्थापक बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 21 अप्रैल 1526 को लड़ा गया यह युद्ध एक छोटे से गांव ‘ पानीपात ‘ में लड़ा गया जो वर्तमान में भारत के हरियाणा राज्य में स्थित है यह युद्ध इतिहास के प्रसिद्ध युद्धो में से हैं इतिहास का यह पहला युद्ध था जिसमें गोले , बारूद और तोपों का उपयोग किया गया। बाबर और इब्राहिम की सेना 14 अप्रैल 1526 को पानीपत के मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने आयी दोनों की सेना 8 दिनों तक बिना लड़े एक दुसरे के सामने खड़ी रही आठ दिनों के बाद 21 अप्रैल को बाबर ने अपनी और से युद्ध आरंभ किया यह युद्ध केवल 6 घंटे तक चला ।
सैन्य शक्ति :- बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनाम मैं लिखा है कि उसके पास केवल 12000 सैनिक थे जिसमें पैदल सेना तथा घुड़सेना शामिल थे इसके साथ ही बाबर के पास 20 से 24 तोपें भी थी। जबकि इब्राहिम लोदी के पास कुल 1 लाख 20 हजार सैनिक थे। लेकिन इताहासकारो के अनुसार बाबर के पास 12000 सैनिक ही थे लेकिन इब्राहिम लोदी के पास 50,000 सेना थे लेकिन फिर भी बाबर की सेना के मुकाबले इब्राहिम लोदी की सेना बहुत ही ज्यादा थी।
पानीपत के प्रथम युद्ध का परिणाम :- इस युद्ध में बाबर की सेना इब्राहिम लोदी की सेना के मुकाबले बहुत कम थी लेकिन बाबर ने अपनी कुशलता और बुद्धिमता के माध्यम से इस युद्ध में विजय प्राप्त किया इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर ने इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी और दिल्ली सल्तनत से लोदी वंश का शासन समाप्त कर मुगल साम्राज्य की नींव डाली।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप दिल्ली सल्तनत से लोदी वंश का शासन समाप्त हो गया और दिल्ली सल्तनत में मुगल वंश ने अपनी नींव डाली और संपूर्ण दिल्ली सल्तनत को बाबर ने अपने नियंत्रण में कर लिया।
बाबर की युद्ध पद्धति लोधी वंश के मुकाबले अत्यंत कुशल थी जिसमें बाबर दो प्रकार के युद्ध पद्धति का उपयोग करते थे ।
(1) तुगलुमा युद्ध पद्धति – इस युद्ध पद्धति मुगल अपनी सेना को तीन भागों में विभाजित कर देते थे दाएं बाएं और केंद्र में।
रूमी पद्धति अथवा अरबा पद्धति – इसमें तोपों और गोलो की इस प्रकार से युद्ध क्षेत्र में व्यवस्थित किया जाता था कि इसमें केवल शत्रु कि अधिक से अधिक क्षति हो इन दोनों पद्धति के कारण ही इस युद्ध का परिणाम बाबर के पक्ष में रहा ।
पानीपत का द्वितीय युद्ध – 5 नवंबर 1556
पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवंबर 1556 को मुगल सम्राट अकबर और हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू के बीच हुई हेमू द्वारा इस युद्ध को करने का लक्ष्य संपूर्ण भारत से मुगलो के शासन और वर्चस्व को समाप्त करना था इस युद्ध में मुगलों की सेना का नेतृत्व बैरम खां ने किया था जबकि इस युद्ध में हेमू की सेना का नेतृत्व उसने स्वयं किया था इस युद्ध के पहले हेमू ने मुगलों के साथ 22 लड़ाईयां लड़ी इन सभी युद्ध में उसने मुगलों को पराजित किया इन सभी युद्धो के परिणामस्वरूप मुगलो को दिल्ली और आगरा जैसे राज्यों से हाथ धोना पड़ा हेमू ने दिल्ली और आगरा पर भी विजय प्राप्त किया और अपना नियंत्रण स्थापित किया उसने दिल्ली के पुराना किला में अपना राज्यभिषेक करवाया और स्वयं को राजा विक्रमादित्य घोषित किया ।
इस युद्ध के समय अकबर मात्र 13 वर्ष का था
सैन्य शक्ति :- इस युद्ध में मुगलों की सेना में 10,000 घुड़सवार थे जिसमें 5000 अनुभवी सैनिक शामिल थे मुगलों की सेना में 5000 सेनाओं की एक टुकड़ी सम्राट अकबर को सुरक्षा प्रदान कर रही थी जो युद्ध के मैदान से एक करीब 8 किलोमीटर दूर पर सुरक्षित स्थान पर तैनात था जबकि इस युद्ध में हेमू की सेना में 1500 हाथियां , कई तोपखाने और लगभग 30,000 प्रशिक्षित राजपूत योद्धा और अश्वसेना शामिल थे ।
पानीपत के द्वितीय युद्ध का परिणाम :- हेमू अपनी सेना के साथ लगातार युद्ध में जीत की ओर बढ़ रहा था सबको लग रहा था कि इस युद्ध में हेमू की विजय होगी लेकिन युद्ध के दौरान अकबर की सेना ने हेमू की आंख में तीर मारकर उसे घायल कर दिया और वह बेहोश हो गया यही घटना इस युद्ध में हेमू के हार का कारण बनी।
हेमू को बेहोश देखकर उसकी सेना को मनोबल टूट गया और उसकी सेना में खलबली मच गई जिसके कारण इस युद्ध में सम्राट हेमू की जीत, हार में परिवर्तित हो गई । इस युद्ध में मुगल सम्राट अकबर की जीत हुई मुगलों ने पुनः दिल्ली और आगरा सहित सभी हारे हुए राज्य को अपने नियंत्रण में कर लिया इस युद्ध के पश्चात मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ और 300 सालों तक मुगलो ने अपना शासन कायम रखा ।
पानीपत का तृतीय युद्ध – 14 जनवरी 1761
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी 1761 को मराठा साम्राज्य एवं अफगान के शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ यह युद्ध दिल्ली से करीब 95 किलोमीटर उत्तर में ‘ पानीपत ‘ में हुआ । इस युद्ध को 18 वीं शताब्दी का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है इस युद्ध में अवध के शासक शुजा-उद-दौला और अफगान शासक रोहिला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।
सैन्य शक्ति :- इस युद्ध में दोनों पक्षों में मिलाकर करीब 125,000 सैनिक शामिल थे जिसमें मराठों की सेना में 55,000 घुड़सवार जिसमें से 11,000 नियमित घुड़सवार थे इसके अलावा मराठों के साथ 2 लाख तीर्थयात्री और शिविर अनुयायी शामिल थे जबकि अहमद शाह अब्दाली की सेना में 41,800 जिसमें से 25,000 नियमित घुड़सवार थे तथा 12,000 पैदल सैनिक शामिल थे ।
पानीपत के तृतीय युद्ध का परिणाम :- यह युद्ध कई दिनों तक चला इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई जबकि इसमें मराठों को हार का सामना करना पड़ा इस युद्ध ने मराठा वर्चस्व को हिलाकर रख दिया इस युद्ध में दोनों पक्षों की सेनाओं को भयंकर छपी हुई इस युद्ध में करीब 60,000 से 70,000 सैनिक मारे गए कहा जाता है की अहमद शाह अब्दाली ने 40,000 मराठा सैनिकों को कैद कर लिया था और उन सभी सैनिकों की हत्या कर दी गई।
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