History of Indus valley Civilization in Hindi ।
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज :-
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन नदी घाटी सभ्यता में से एक है सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का श्रेय बहादुर दयाराम साहनी को दिया जाता है क्योंकि उन्होंने ही सन् 1921 में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थान की खोज की इसके बाद सन् 1922 में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज और सिंधु सभ्यता प्रकाश में आई।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का इतिहास :-
सन् 1856 ई में कराची ओर लाहोर के बीच रेलवे ट्रैक के निर्माण के दोरान एक अंग्रेज इंजीनियर जॉन विलियम ब्रंटम को कुछ ईंटें मिलीं जिसका आकार आज के ईंटों की तरह ही था। लेकिन वे ईंटें आज के ईंटों से कई गुना ज्यादा मजबूत थे। अंग्रेज इंजीनियर ने जब वहां रहने वाले लोगों से पूछा कि आपको ये ईंटें कहा से मिलती हैं तो उन्होंने कहा कि हमें ये ईंटें यहां खुदाई में मिलते हैं यहां रहने वाले प्राय लोगों के घर इन्हीं ईंटों से बनाए गए हैं। तब वे इंजीनियर समझ गए कि यहां कोई बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है उन्होंने यहां खुदाई करवाया उन्होंने आस-पास के खंडहरों से ईंट खोदना शुरू किया उन्हें वहां कुछ पुरातात्विक अवशेष मिले। रेलवे ट्रैक का काम खत्म होने के बाद वहां खुदाई का काम बंद कर दिया गया।
1873 ई. जनरल कनिंघम को भी इस स्थान पय कुछ पुरावस्तुऍं मिलीं पर इन वस्तुओं के आधार पर वे इस सभ्यता का मुल्यांकन करनें में असमर्थ रहे। 1921 ई. में दयाराम साहनी को हड़प्पा में खुदाई के दौरान कुछ मोहरें मिलीं। इसके बाद 1922 ई. में डाॅ. राखाल दास बनर्जी ने वहॉं एक बौद्ध स्तूप के उत्खनन के क्रम में यह पता लगाया कि उसके निकट एक अतिप्राचीन सभ्यता के ध्वंस अवशेष दबे हैं। उन्हीं के प्रस्ताव पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने उस क्षेत्र की खुदाई की ओर हड़प्पा सभ्यता प्रकाश में आयी।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने टीलों की खुदाई द्वारा हर स्तर पर पायी जाने वाले प्रत्येक वस्तु का सूक्ष्म निरीक्षण किया जिससे यह सभ्यता कालबद्ध हुई। 1924 में जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सक्षम सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई हड़प्पा सभ्यता को एक नवीन कॉंस्ययुगीन सभ्यता घोषित किया। यह सभ्यता इतनी विशाल थी कि आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा भारत में इसका विस्तार था। हड़प्पा सभ्यता को प्रस्तर धातुयुगीन सभ्यता भी कहां जाता है क्योंकि इस काल में पत्थर के हथियारों के साथ-साथ कॉंसे की सामग्रियों का भी उपयोग होता था।
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है :-
हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है जिसका उत्खनन 1921 ई. मे दयाराम साहनी करवाया। इसके बाद 1922 ई. में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खुदाई की। चूंकि सर्वप्रथम उत्खनन हड़प्पा स्थल में हुआ था इसलिए इसे पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति का नाम दिया था। हड़प्पा में पूर्ण विकसित अवस्था के पहले और पूर्ण विकसित अवस्था के बाद की भी भूमिका के अवशेष पाए गये जिसे क्रमशः आरम्भिक, पूर्ण विकसित और परवर्ती या उत्तर हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है इसके कारण भी अन्य स्थलों की तुलना में हड़प्पा का महत्त्व अधिक है। इसके अलावा इस संपूर्ण सभ्यता का विकास सिंधु नदी घाटी के तट पर हुआ था जिसके कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus valley Civilization ) के नाम से भी जाना जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं –
आधुनिक नगर नियोजन प्रणाली :-
हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता थी इसकी नगर नियोजन प्रणाली इस नगर नियोजन प्रणाली का साक्ष्य है ‘मोहनजोदड़ो’। मोहनजोदड़ो में स्नानघरो और नालियों में जिन ईंटों का उपयोग हुआ था उसपर जिप्सम और चारकोल की पतली परत चढ़ाई गयी थी चारकोल की परत किसी भी हालत में पानी को बाहर निकलने नहीं देती इससे यह पता चलता है कि मोहनजोदड़ो के लोग चारकोल जैसे तत्व के बारे में भी जानते थे जिसे वैज्ञानिकों ने कई सालों बाद खोजा था।
मोहनजोदड़ो में सड़कें और गलियां सीधी बनायी गयी थी शहर में पानी और गंदगी निकालने के लिए नालियां तक बनायी गयी थी। माना जाता है कि दुनिया को कुऍं की देन हड़प्पा सभ्यता ने ही दी है। मोहनजोदड़ो में 700 से ज्यादा कुऍं होने के सबूत मिले हैं इस शहर में पानी और गंदगी निकालने के लिए नालियां बनायी गयी थी लोगों के घरों से निकलने वाली गंदगी और पानी नालियों के सहारे शहर की मुख्य नाली में मिल जाती थी यहां के लोग स्वच्छता के मामले में इतने जागरूक थे जितने शायद आज के लोग भी नही है। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि हजारों साल पुरानी इस सभ्यता में प्रत्येक घर में स्नानागार और शौचालय हुआ करता था। मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार (स्नानघर) खोजा गया जिसकी लंबाई 11.88 मीटर तथा चौड़ाई 7.2 मीटर थी।
कृषि व्यवस्था, व्यापार और विकास :-
मोहनजोदड़ो में एक विशाल अन्नभंडार मिला है जिसमें गेहूं और जो के साक्ष्य मिले हैं तथा यहां मिले हुए सिक्कों में जानवरों के चित्र अंकित है जिससे यह पता चलता है कि कृषि और पशुपालन यलहां के लोगों का मुख्य पेशा था यहां के लोग मुख्यत: गेहूं, कपास, जो, मटर आदि की खेती किया करते थे।
हड़प्पा सभ्यता के लोग समुद्र के रास्ते दूसरे देशों से व्यापार करते थे। इसके सबूत मिले हैं आबू धाबी में आबू धाबी में खोजकर्ताओं को एक विशाल कुऑं मिला है जिसमें हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी हुई कुछ चीजें मिली है इसके अलावा मिश्र और मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता से जुड़े हुए कुछ सिक्के और मोहरें मिलें हैं। जिससे यह पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग समुद्री मार्ग से 3500 कि.मी. तक की दूरी तय करते थे।
वैज्ञानिकों ने यहॉं मिलें हुए चीजों की कार्बन डेटिंग की जिससे यह पता चला कि ये चीजें लगभग 4500 साल पुरानी है।
इस सभ्यता के लोग इतने विकसित थे इनका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय इन लोगों ने अपने शहर को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए शहर के बाहर एक बड़े बॉंध का निर्माण किया था यही नहीं उस बाढ़ के पानी को वे लोग छोटे-छोटे तालाब में जो शहर के चारों ओर बनाये गये थे उसमें जमा करते थे जिसका उपयोग पूरा शहर करता था साथ ही खेती के लिए पूरे साल इसी पानी का उपयोग किया जाता था।
यहां खुदाई में मिले कुछ कंकालों के दॉंतो का जब निरीक्षण किया गया तो एक चोंकाने वाली बात सामने आई कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग आज की तरह ही नकली दॉंतो का भी उपयोग करते थे इससे यह पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता में चिकित्सा पद्धति भी काफी विकसित थी। यहां के लोग पीतल ,तांबा तथा लकड़ी के आभूषण और हथियार तथा सोने की कलाकृतियां बनाने में माहिर थे लेकिन यहां लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली जिससे इतिहासकारो का यह मानना था कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों को लोहे का ज्ञान नहीं था। यह एक चोंकाने वाली बात थी कि जिस सभ्यता के लोग पीतल और तांबा मिलाकर जस्ता बनाना जानते थे उन्हें लोहे जैसी धातु का ज्ञान नहीं था
मोहनजोदड़ो में भारी मात्रा में सिक्के मिले हैं जिसमें जानवरों के चित्र अंकित है । इस सभ्यता का एक रहस्य है इसकी ‘लिपि’। यहां खुदाई में मिली सामग्रियों में कोन सी लिपि की बनावट है ये इतिहासकारो और वैज्ञानिकों के लिए अभी भी एक अबुझ पहेली है। इस सभ्यता की लिपि दाऍं से बाऍं लिखी जाती थी।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि :-
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि में 63 मूल अक्षर है जिन्हें सेलखड़ी की आयाताकार मुहरो और तांबे के गुटिकाओ पर अंकित किया गया था इस लिपि का सबसे प्रथम साक्ष्य 1853 में मिला और 1923 में संपूर्ण लिपि प्रकाश में आई लेकिन अभी भी इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक थी जो दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी इतिहासकारों का मानना है कि इस लिपि का प्रत्येक अक्षर किसी भाव, ध्वनि या वस्तु का सूचक है जिसके कारण इस लिपि को भावचित्रात्मक कहा गया है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि ब्राह्मी लिपि से मिलती जुलती है इसलिए इसे पूर्वी ब्राह्मी लिपि कहा गया है। इसके अतिरिक्त 1999 में खोजकर्ताओं को मोहनजोदड़ो में मिट्टी के नीचे दबे उस वक्त की लिपि के कुछ अक्षर और चिन्ह मिले जिसका जॉंच करने के बाद पता चला कि यह लकड़ी का एक बड़ा बोर्ड था जिसे शहर के मुख्य दरवाजे पर लगाया जाता था लेकिन दुर्भाग्यवश खोजकर्ता अभी तक उनकी लिपि को समझ नहीं पाए
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन :-
सिंधु घाटी सभ्यता के नगर हड़प्पा में पक्की मिट्टी के बने स्त्रीयों की मूर्तियां भारी संख्या में मिली हैं। यहां से एक मूर्ति में एक नग्न स्त्री का चित्र है जिनके गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका सम्बन्ध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा इससे हमें यह पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग धरतीमाता को देवी का दर्जा देते थे और इनकी पूजा उसी तरह की जाती थी जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की देवी ‘ आइसिस् ‘ की पूजा करते है।
इस सभ्यता से मिले कुछ वैदिक सूत्रो में पृथ्वी माता की स्तुति है, धोलावीरा के दुर्ग में एक कुआँ मिला है जिसमें नीचे की तरफ जाती सीढ़ियाँ है और उसमें एक खिड़की है जहाँ दीपक जलाने के सबूत मिलते है इस कुएँ में सरस्वती नदी का पानी आता था इसलिए इतिहासकार मानते हैं कि सिन्धु घाटी के लोग उस कुएँ के जरिये दैवी सरस्वती की पूजा करते थे।
सिन्धु घाटी सभ्यता के एक नगर में एक सील पाया गया है जिसमें एक 4 मुख वाले एक योगी का चित्र है कई विद्वानों का मानना है कि यह योगी शिव है। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता में अभी तक एक भी मंदिर का साक्ष्य नहीं मिला है।
सिंधु सभ्यता के नगर लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुण्ड का साक्ष्य मिला है जो इस सभ्यता के वैदिक होने का प्रमाण देते है इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो में मिले एक मुहर मे स्वास्तिक के चित्र मिले है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि सिंधु सभ्यता के लोग मुख्यत: कबूड वाले सांड की पूजा करते थे इसके साथ ही यहां वृक्षपूजा के भी साक्ष्य मिले हैं जिसमें मुख्य रुप से बबूल एवं पीपल की पूजा की जाती थी।
सिंधु सभ्यता में अंतिम संस्कार की विधि :-
इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते थे क्योंकि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की आबादी करीब 50 हज़ार थी लेकिन वहां से सिर्फ लगभग 100 कब्र मिले है जो इस बात की और इशारा करता है सिंधु सभ्यता के लोग शवो को जलाते थे लेकिन फिर भी कुछ विद्वानों का मानना है कि सिंधु सभ्यता में अंतिम संस्कार तीन प्रकार से की जाती थी
1. दास संस्कार
2. आंशिक समाधिकरण और
3. पूर्ण समाधिकरण