जगन्नाथ मंदिर, पुरी का इतिहास । history of jagannath Temple Puri

जगन्नाथ मंदिर, पुरी का इतिहास । history of jagannath Temple Puri in hindi

जगन्नाथ मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है यह मंदिर भगवान जगन्नाथ यानी भगवान विष्णु को समर्पित है आज हम इस लेख में जगन्नाथ मंदिर पुरी से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवा रहे है जैसे कि जगन्नाथ मंदिर की स्थापना किसने की, जगन्नाथ मंदिर का इतिहास, जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा, जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला, जगन्नाथ मंदिर की विशेषता, जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य एवं जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे आदि सभी जानकारी दी गई है इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर देखें ।

जगन्नाथ मंदिर, पुरी का इतिहास । history of jagannath Temple Puri in hindi

जगन्नाथ मंदिर, पुरी जानकारी ( All information about jagannath Temple Puri in Hindi )

जगन्नाथ मंदिर की स्थापना व इतिहास

इतिहास में उल्लेख है कि वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया गया था हालांकि इस मंदिर का निर्माण 2 ईसा पूर्व में भी हुआ था। 

गंग वंश के ताम्र पत्रों से यह पता चला है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग राजा अनन्तवर्मन चोडगंग देव ने शुरू किया था इसके प्रश्चात सन् 1197 में ओडिशा के शासक अनंग भीमदेव ने इस मन्दिर के निर्माण कार्य को पूरा किया इसके बाद इस मंदिर में पूजा अर्चना शुरू की गई |

सन् 1558 में अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला कर दिया इस हमले के दौरान उसने जगन्नाथ मंदिर पर भी हमला कर दिया उसने इस मंदिर में स्थित मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस कर दिया एवं इस मंदिर में पूजा बन्द करवा दी बाद में रामचन्द्र देब के इस क्षेत्र में अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया उन्होंने जगन्नाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया एवं इस मंदिर के मूर्तियों की पुनर्स्थापना की।

जगन्नाथ मंदिर पुरी से जुड़ी पौराणिक कथा

जगन्नाथ मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व से मिलता है इसमें कहा गया है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्‍ववसु ने नीलमाधव के रूप में भगवान जगन्नाथ की पूजा की थी।

भारतीय पुराणों के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि यानि भगवान राम की पूजा की जाती थी सबसे प्राचीन पुराण मत्स्य पुराण में लिखा है कि इस क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी ही पूजा होती है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने विभीषण को इस स्थान पर अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। 

जबकि स्कंद पुराण में पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन मिलता है स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है जो 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका उत्तर क्षेत्र समुद्र की सुनहरी रेत है जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है जबकि सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा स्वयं महादेव करते हैं। शंख के दूसरे घेरे में भगवान शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है जबकि शंख के तीसरे वृत्त में मां विमला और नाभि स्थल में भगवान जगन्नाथ रथ के सिंहासन पर विराजमान है।

जगन्नाथ मंदिर के उद्गम से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति यहां स्थित एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी यह इतनी चकचौंध करने वाली थी कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को एक रात स्वप्न में यह मूर्ति दिखाई दी थी उसने स्वपन में देखा कि इस मूर्ति का तेज बहुत अधिक है |

उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी के लट्ठे से वह मूर्ति का निर्माण करवाये सपनों के अनुसार राजा को समुद्र तट पर लकड़ी का लट्ठा मिला। अब बारी थी इस लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की राजा के सबसे कुशल से कुशल कारीगरों ने लकड़ी से मूर्ति गढ़ने का प्रयास किया लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका।

भगवान विश्‍वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में बढ़ई कारीगर के भेष में राजा के सामने उपस्थित हुए उन्होंने राजा को कहा कि वे इस लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति बना सकते है लेकिन एक शर्त है यदि आप मेरी यह शर्त मानेंगे तो में इस लड़की से मूर्ति बना सकता हूं।

राजा ने पूछा, क्या शर्त है आपकी उन्होंने कहा कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे इस दौरान वे एक कमरे में बंद रहेंगे और उनको मूर्ति बनाते हुए कोई नहीं देखेगा राजा ने उनकी यह शर्त मान ली लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं 

मूर्ति बनाने के अंतिम दिन राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई और वह दरवाजे के पास गई लेकिन उन्हें कोई भी आवाज सुनाई नहीं दिया वह घबरा गई उन्हें लगा कि कारीगर मर गया है उन्होंने राजा को इसकी सूचना दी अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रहा था तो राजा को भी यही लगा कि शायद वह बुढ़ा बढ़‌ई मर गया है |

राजा ने शर्त की अवहेलना करते हुए कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। जैसे ही कमरा खोला गया तो उन्होंने देखा बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें 3 अधूरी ‍मूर्तियां पड़ी है भगवान नीलमाधव यानी भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बालभद्र के छोटे-छोटे हाथ बने थे लेकिन उनकी टांगें नहीं बनी थी जबकि उनकी बहन सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया तब से तब से लेकर आज तक ये तीनों मूर्तियां इसी रूप में विद्यमान है |

Jagannath Temple history

जगन्नाथ मंदिर की संरचना और वास्तुकला

मंदिर का वृहत क्षेत्र 37,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला है और यहां मंदिर चारदिवारी से घिरा हुआ है कलिंग शैली के स्थापत्य कला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से निर्मित यह जगन्नाथ मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है।

यह मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है इस मंदिर के शिखर पर एक चक्र और ध्वज स्थित है यह चक्र भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतीक है इसे नीलचक्र भी कहा जाता है और यह चक्र अष्टधातु से निर्मित है इस मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज इस बात का प्रतीक है कि भगवान विष्णु इस मंदिर के भीतर निवास करते हैं। इस मुख्‍य मंदिर के आसपास 30 और छोटे-बड़े मंदिर स्थापित है।

जगन्नाथ मंदिर का मुख्य ढांचा एक 65 मीटर ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना हुआ है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में क‌ई देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

इस मंदिर का मुख्य भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा इसकी दूसरी दीवार मंदिर के मुख्य भाग को घेरे हु‌ई है इसके साथ हीं इस मंदिर में एक सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है जिसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं।

इसके साथ ही इस मंदिर में स्थित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां एक पाषाण चबूतरे पर स्थापित है जो इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इतिहास की माने तो इन मूर्तियों की पूजा और अर्चना इस मंदिर के निर्माण से बहुत पहले से की जाती थी।

जगन्नाथ मंदिर, पुरी की विशेषता एवं इस मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य और रहस्य

पुरी में स्थित इस जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें भगवान जगन्नाथ यानि श्रीकृष्ण , उनके भाई बालभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां हैं यह भारत का अनोखा मंदिर है जहां लकड़ी की मूर्तियां स्थापित है इसके अलावा इस मंदिर की गई और विशेषताएं भी हैं।

जगन्नाथ मंदिर पुरी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

जगन्नाथ पुरी मंदिर की तीनों मूर्तियां प्रत्येक 12 साल में बदली जाती हैं एवं मंदिर पुरानी मूर्तियों की जगह नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं जानत मंदिर में मूर्ति बदलने की प्रक्रिया अत्यंत रोचक है क्योंकि जिस वक्त इस मंदिर की मूर्तियां बदली जाती हैं उस समय पूरे  शहर में बिजली काट दी जाती है मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है |

मंदिर में किसी की भी के भी प्रवेश पर पूर्ण पाबंदी होती है और सिर्फ उसी पुजारी को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है जो मूर्तियां बदलता है मूर्तियां बदलते वक्त पुजारी की आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है इसके प्रश्चात इस मंदिर में मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है पुरानी मूर्तियों के स्थान पर नई मूर्तियां स्थापित कर दी जाती हैं

पुरी का यह जगन्नाथ मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है  इस मंदिर में एक सिंहद्वार है इस सिंहद्वार के बारे में यह कहा जाता है कि जब कोई श्रद्धालु इस मंदिर में आता है तो जब तक उसके कदम सिंहद्वार के अंदर नहीं चले जाते तब तक उसे समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देती है लेकिन जैसे ही उसके कदम सिंहद्वार के अंदर प्रवेश करता है लहरों की आवाज गुम हो जाती है जो आज भी एक रहस्य है।

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के क्षेत्र में कभी भी किसी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा गया कभी भी किसी ने इस मंदिर परिसर में पक्षी को बैठे हुए नहीं देखा इसी कारण इस मंदिर के ऊपर से किसी भी हवाई जहाज या हेलिकॉप्टर के उड़ने पर भी पाबंदी है।

हम सब यह भली-भांति जानते हैं कि हर एक चीज की परछाई होती है लेकिन जगन्नाथ मंदिर की परछाई कभी किसी ने नहीं देखी क्योंकि इस मंदिर की परछाई कभी नहीं पड़ती यह आज भी एक रहस्य है जिससे वैज्ञानिक भी हैरान है।

• इस मंदिर के शिखर पर एक लाल झंडा लगा है इस झंडे की से संबंधित एक रोचक तथ्य देते हैं इस झंडे को प्रत्येक दिन बदला जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि अगर किसी दिन इस झंडे को नहीं बदला गया मंदिर अगले 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि यह झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में उड़ता है।

• कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई गृह है इस रसोई में 500 रसोइया और ऊनके 300 सहयोगी काम करते हैं. इस रसोई से जुड़ा एक अत्यंत रोचक तथ्य है जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद इसी रसोई गृह में बनाया जाता है इस मंदिर का प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है ये प्रसाद सात बर्तनों में बनाया जाता है |

सातों बर्तन को एक-के ऊपर एक करके एक साथ रखा जाता है इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि जो बर्तन सबसे ऊपर रखा जाता है उसमें सबसे पहले प्रसाद बनकर तैयार होता है और सबसे नीचे वाले बर्तन का प्रसाद सबसे अंतिम में बनकर तैयार होता है इस रसोई गृह के बारे में यह भी कहा जाता है कि चाहे लाखों भक्त इस मन्दिर में आ जाएं इस रसोई का प्रसाद कभी प्रसाद कम नहीं पड़ा लेकिन जैसे ही मंदिर का गेट बंद होने का समय आता है प्रसाद अपने आप समाप्त हो जाता है यह एक अत्यंत आश्चर्यजनक बात है।

जगन्नाथ मंदिर, पुरी कैसे पहुंचे ( How to reach jagannath Temple Puri in Hindi )

हवाई मार्ग से पुरी जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे

पुरी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर एअरपोर्ट हैं जो पूरी शहर से लगभग 53 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जबकि दूसरा हवाईअड्डा विशाखापत्तनम हवाई अड्डा है जो पुरी से लगभग 372 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां से पुरी शहर पहुंचने के लिए क‌ई सारी सेवाएं उपलब्ध है जिसके प्रश्चात आप आसानी से जगन्नाथ मंदिर पहुंच सकते है । 

रेलमार्ग द्वारा पुरी जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे

ट्रेन के द्वारा पुरी तक आसानी से पहुँचा जा सकता हैं आप ट्रेन के द्वारा पूरी रेलवे स्टेशन आसानी से पहुंच सकते हैं पूरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर पुरी की दूरी मात्र 6 किलोमीटर हैं।

सड़क मार्ग द्वारा पुरी जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे

पुरी शहर से अनेक बड़े शहर के सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ हैं जहां पर 24 घंटे बस सुविधा उपलब्ध हैं इन सेवाओं के माध्यम से आप पूरी आसानी से पहुंच सकते हैं।

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