मौर्य साम्राज्य का इतिहास । History of Maurya dynasty in Hindi
मौर्य साम्राज्य का इतिहास :-
मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य था। मौर्य राजवंश ने 322 ई. पूर्व से 185 ई. पूर्व तक यानि लगभग 137 सालों तक भारत पर राज किया। मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान भारत एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था जिसमें वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बलूचिस्तान, नेपाल और कई क्षेत्र शामिल थे इस लेख में मौर्य साम्राज्य से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी जैसे – मौर्य साम्राज्य का इतिहास, मौर्य साम्राज्य के शासक, मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था एवं मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था से संबंधित संपूर्ण जानकारी दी गई है इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना :-
मौर्य साम्राज्य की स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य एवं उनके गुरू कौटिल्य को दिया जाता है यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदान से शुरू हुआ था। जहां आज के बिहार और बंगाल स्थित है मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की ओर इस साम्राज्य का विस्तार किया चंद्रगुप्त मौर्य ने छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों की आपसी मतभेदों का फायदा उठाया।
मौर्य वंश से पहले मगध पर नंद वंश का शासन था उस समय मगध एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा जिसका शासन नंद वंश के शासक धनानंद के हाथों में था 325 ई. पूर्व में संपूर्ण उत्तर पूर्वी भारत पर सिकंदर का शासन था जब सिकंदर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तब एक ब्राह्मण मगध के शासक को साम्राज्य विस्तार में प्रोत्साहित करने के लिए आया यह ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि चाणक्य था। राजा धनानंद ने चाणक्य को एक तुच्छ ब्राह्मण कहकर उन्हें अपने राज दरबार में अपमानित किया। इस अपमान का चाणक्य के हृदय पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उसी राज दरबार में उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह धनानंद को सबक सिखा कर रहेंगे। लेकिन इस कार्य के लिए उन्हें एक सच्चे, साहसी और निडर योद्धा की तलाश थी चाणक्य को ये सभी गुण चंद्रगुप्त मौर्य में दिखाई दिए इसलिए चाणक्य नेे चंद्रगुप्त मौर्य को अपना शिष्य बनाया और उन्हें युद्ध विद्या तथा वेदों की भी शिक्षाा दी और उन्हें एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाया चाणक्य को कौटिल्य के नाम से जाना जाता है उनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था।
चाणक्य ने अपनी बुद्धिमता से पूरे राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछाया उस समय यह एक अभूतपूर्व कदम था गुप्तचरों के कारण उन्हें राज्य में चल रहे के हालातों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी बड़ी ही आसानी से मिल जाती थी। आचार्य चाणक्य ने यूनानी आक्रमणकारियों को मार भगाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को तैयार किया इस कार्य में चंद्रगुप्त मौर्य को गुप्तचरो के माध्यम से बहुत सहायता मिली।
मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में कई गृह युद्ध को उकसाया उसके गुप्तचरों ने नंद के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया इसके बाद नंद ने अपना पद छोड़ दिया और चंद्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुआ नंद को निर्वासित जीवन जीना पड़ा इसके अतिरिक्त धनानंद के बारे में और कोई जानकारी नहीं है।
मौर्य साम्राज्य के शासक :-
1. चंद्रगुप्त मौर्य
मौर्य साम्राज्य का पहला शासक चंद्रगुप्त मौर्य था। चंद्रगुप्त मौर्य ने ही मौर्य वंश की स्थापना की। कुछ विद्वानों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की माता का नाम मुरा था मुरा शब्द का संशोधित शब्द मौर्य है और मुरा से ही मौर्य शब्द बना है इतिहास में यह पहली बार हुआ जिसमें माता के नाम से पुत्र का वंश चला हो आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य सर्वश्रेष्ठ योद्धा उन्होंने चंद्रगुप्त को सभी प्रकार की युद्ध विद्या में निपुण बनाया चंद्रगुप्त मौर्य एक शक्तिशाली योद्धा और प्रवल शासक था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सबल और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र की नींव डाली जो आज तक एक आदर्श है आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ ही उसे सत्ता का अधिकार भी मिल गया।
चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार :- उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था मगध पर नियंत्रण के बाद चंद्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया।
316 ई. पूर्व तक चंद्रगुप्त मौर्य ने पूरे उत्तर-पूर्वी भारत पर अपना अधिकार जमा लिया था उत्तर पूर्वी भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को 305 ई. पूर्व में हराया था। कहा जाता है कि इस युद्ध में सेल्यूकस की हार के बाद चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई जिसके अनुसार 40 वर्ष नी गंधार काबुल हिरात और बलूचिस्तान केे प्रदेश चंद्रगुप्त को दे दिए इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार केेे रूप भेेंट किया कहा जाता है कि चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी कर्नालिया (हिलना) से विवाह कर लिया था। इसके साथ ही सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी 6 लाख सैनिकों की विशाल सेना से संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त किया और अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया।
इतिहासकारों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 32 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला इसके प्रश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया था ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु जैन मुनि भद्रवाह के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में सन्यासी के रूप में रहने लगे थे इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा ही माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सच्चे निष्ठावान जैन की तरह आमरण उपवास करके अपना दम तोड़ा था।
2. बिंदुसार
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उसके पुत्र बिंदुसार ने सत्ता पर अपना अधिकार किया परंतु उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है दक्षिण की ओर मौर्य साम्राज्य के विस्तार का श्रेय बिंदुसार को ही दिया जाता है हालांकि इतिहास में उसके विजय अभियान का कोई भी साक्ष्य नहीं है जैन परंपरा के अनुसार बिंदुसार की माता का नाम दुर्धरा था और पुराणों में वर्णित है कि बिंदुसार ने 25 वर्षों तक मगध पर शासन किया। बिंदुसार को अमित्रघात यानी दुश्मनों का संघार करने वाला कहा जाता है जिसे यूनानी ग्रंथों में amitrochates का नाम दिया गया है। बिंदुसार आजीवक धर्म को मानता था इसके अतिरिक्त इतिहास में बिंदुसार के बारे में और अधिक जानकारी नहीं है।
3. चक्रवर्ती सम्राट अशोक
बिंदुसार के बाद सम्राट अशोक मौर्य वंश का शासक बना सम्राट अशोक भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक है चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शासनकाल में ही मौर्य साम्राज्य का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ।
साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उनका नाम सभी राजाओं में सबसे ऊपर है कलिंग का युद्ध उनके जीवन का अंतिम युद्ध था इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने जीवन भर कभी ना युद्ध करने की प्रतिज्ञा की।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया जिसकी दीक्षा उन्होंने बुद्ध मुनि उपगुप्त से ली।
बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अशोक ने शिकार करना और पशुओं की हत्या करना बंद कर दिया उसने पशुओं तथा जानवरों के लिए चिकित्सालयों की स्थापना करवाई सम्राट अशोक ने आरामगृह, धर्मशाला, कुएं का भी निर्माण करवाया रुद्रदमन के जूनागढ़ शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बांध पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था।
सम्राट अशोक को देवानांप्रिय और प्रियदर्शी जैसी उपाधि दी गई है सम्राट अशोक के शिलालेख और शिलाओ पर उत्तीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह – जगह पाए गए हैं।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजें उन्होंने बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को अपनी राजधानी से श्रीलंका जल मार्ग से भेजा। पटना या पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महेंद्र घाट का नाम अशोक के पुत्र महेंद्र के नाम पर ही रखा गया है युद्ध से मन उब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था ताकि अपने साम्राज्य को विदेशी आक्रमण से बचाया जा सके।
सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान और शक्तिशाली बन कर विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ।
4. कुणाल
सम्राट अशोक के बाद उनके पुत्र कुणाल ने मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली इसके साथ ही कुणाल मौर्य साम्राज्य का चौथा शासक बना कुणाल सम्राट अशोक रानी पद्मावती के पुत्र थे कुणाल सम्राट अशोक के बड़े पुत्र थे इसलिए वह कुणाल को राजगद्दी पर बैठाना चाहते थे लेकिन उनकी सौतेली माता को यह पसंद नहीं था ईर्ष्या के कारण उनकी सौतेली मॉं ने कुणाल को अंधा कर दिया लेकिन फिर भी कुणाल ने लगभग 8 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला।
5. दशरथ मौर्य
ये सम्राट अशोक के पोते थे दशरथ मौर्य मौर्य साम्राज्य का पांचवा शासक था। इन्होंने 232 ई० पूर्व से 224 ई० पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया। ये सम्राट अशोक की धार्मिक और सामाजिक नीतियों का ही पालन करते थे।
6. सम्प्रति
दशरथ मौर्य के बाद उनके चचेरे भाई संप्रति ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली संप्रति मौर्य वंश का शासक छठवां शासक था इन्होंने 224 ई० पूर्व से 215 ई० पूर्व तक यानी करीब 9 वर्षो तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया। संप्रति अशोक के पुत्र कुणाल के पुत्र थे।
7. शालिशुक
शालिशुक को मौर्य साम्राज्य का सातवां शासक माना जाता है इन्होंने 215 ई० पूर्व से 202 ई० पूर्व तक यानी लगभग 13 सालों तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया । शालिशुक सम्प्रति मौर्य का उत्तराधिकारी था। लेकिन गर्गि संहिता के युग पुराण खंड में शालिशुक का उल्लेख मौर्य साम्राज्य के अधर्मी शासक के रूप में किया गया है।
8. देववर्मन
शालिशुक के बाद उनके पुत्र देववर्मन ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। इन्होंने 202 ई० पूर्व से 195 ई ० पूर्व यानी 7 सालो तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया ।
9. शतधन्नवा
देववर्मन के बाद उनके उत्तराधिकारी शतधन्नवा ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। इन्होंने लगभग आठ वर्षों तक ( 195 ई० पूर्व से 187 ई० पूर्व ) तक शासन किया । इन्होंने अपने कुछ प्रदेशों को युद्ध के दौरान खो दिया था ।
10. वृहद्रथ
वृहद्रथ को मौर्य वंश का अंतिम शासक माना जाता है। इन्होंने 187 ई० पूर्व से 185 ई० पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया । वृहद्रथ की हत्या इनके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की और मौर्य साम्राज्य के स्थान पर शुंग साम्राज्य की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था
मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी इसके साथ ही साम्राज्य में प्रशासन के लिए साम्राज्य को और 4 प्रांतों में बांटा गया था जिसमें से पूर्वी भाग की राजधानी वैशाली थी तो पश्चिम भाग की राजधानी स्वर्णगिरी थी इसी प्रकार उत्तरी तथा दक्षिणी भाग की राजधानी तक्षशिला तथा उज्जैन थी। इसके अतिरिक्त समापा, इशिला और कौशांबी मौर्य साम्राज्य के महत्वपूर्ण नगर थे राज्य में प्रशासन को चलाने के लिए प्रांतपालो को नियुक्त किया गया था ये प्रांतपाल राजघराने के ही राजकुमार होते थे जो स्थानीय प्रांतों के शासक थे राजकुमारों की मदद के लिए प्रत्येक प्रांत में एक मंत्री परिषद तथा एक महामात्य होते थे प्रत्येक प्रांत 8 जिलों में बॅंटे होते थे तथा प्रत्येक जिला गांव के समूह में बॅंटा होता था जबकि ‘प्रादेशिक’ जिला प्रशासन का प्रधान होता था जबकि रज्जाक जमीन को मापने का काम करता था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गॉंव थी जिसका प्रधान ग्रामीक कहलाता था।
कौटिल्य ने अपनी रचना अर्थशास्त्र में नगरों की प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा है। विद्वानों का कहना है कि उस समय पाटलिपुत्र अथवा अन्य नगरों का प्रशासन इस सिद्धांत के अनुरूप ही रहा होगा। मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में पाटलिपुत्र के प्रशासन का वर्णन किया उसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का शासन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था जिसमें 30 सदस्य होते थे ये 30 सदस्य पांच-पांच सदस्यों वाले 6 समितियों में बॅंटे होते थे प्रत्येक समिति का कुछ निश्चित कार्य होता था।
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