कैलाशनाथ मंदिर का इतिहास । Kailashnath Temple history in Hindi
कैलाश नाथ मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के एलोरा की गुफाओं में स्थित भारत का एक विश्व प्रसिद्ध हिन्दु मंदिर है यह मंदिर अपने आश्चर्यजनक संरचना एवं वास्तुकला के लिए जाना जाता है इस मंदिर को विश्व के सबसे रहस्यमई मंदिरों में से एक माना जाता है अपनी वास्तुकला के लिए यह मंदिर पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है ।
इस आर्टिकल हम आपको महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे कि कैलाशनाथ मंदिर कहां स्थित है, कैलाशनाथ मंदिर की स्थापना कैलाशनाथ मंदिर का इतिहास, कैलाश नाथ मंदिर की संरचना हुआ वास्तुकला की जानकारी दी गई है इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें ।
कैलाशनाथ मंदिर की स्थापना व इतिहास ( kailashnath Temple history )
एलोरा में स्थित लयण-श्रृंखला के अनुसार एलोरा की गुफाओं में स्थित कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण प्रथम ने 757 ई. से 783 ई. के मध्य करवाया था ।
कैलाशनाथ मंदिर के निर्माण के बारे में अधिकांश इतिहासकारों का यही मानना है की कैलाश नाथ मंदिर का अधिकांश हिस्साराजा कृष्ण प्रथम के शासनकाल के दौरान पूरा हुआ था लेकिन इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इस मंदिर परिसर के बहुत से हिस्सों का निर्माण अन्य हिंदू शासकों द्वारा भी करवाया गया था ।
16 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करनेेे के लिए अपने 3000 सैनिकों को इस मंदिर को नष्ट करने का काम सौंपा औरंगजेब के सैनिकों ने लगभग 3 वर्षों तक मंदिर को नष्ट करने का पूर्ण प्रयास किया इस दौरान इस मंदिर को थोड़ी – बहुत क्षति पहुंची लेकिन वह इस मंदिर को पूरी तरह से नष्ट करने में असफल रहा।
कैलाशनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यताएं
इस मंदिर के निर्माण को लेकर यह मान्यता है कि राजा कृष्ण प्रथम एक बार गंभीर रूप से बीमार हुए तब राजा कृष्ण प्रथम की पत्नी ने राजा के स्वस्थ होने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की और यह प्रण लिया कि राजा के स्वस्थ होने पर वह शिव मंदिर का निर्माण करवाएँगी और जब तक मंदिर पूर्ण रूप से नहीं बन जाएगी तब तक वे व्रत धारण करेंगी ।
राजा जब स्वस्थ हुए तो इस मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया लेकिन रानी को यह बताया गया कि मंदिर के निर्माण में बहुत अधिक समय लगेगा ऐसे में महारानी के लिए व्रत रख पाना मुश्किल था अपने इस समस्या के समाधान के लिए राजा की पत्नी ने भगवान शिव से सहायता मांगी कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें भूमिअस्त्र प्राप्त हुआ कहा जाता है कि इसी अस्त्र के कारण इस कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव हो पाया मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होने के बाद इस भूमिअस्त्र को भूमि के नीचे छुपा दिया गया।
पुरातत्वविद यह अनुमान लगाते हैं कि जिस तरह से कैलाश नाथ मंदिर का निर्माण किया गया है इस मंदिर के निर्माण में कम से कम 100 से 150 वर्षों का समय लगना चाहिए लेकिन इतिहास की माने तो इस मंदिर का निर्माणकार्य मात्र 18 वर्षों पूरा किया गया यही कारण है कि कुछ लोग यह मानते है कि बिना दिव्य शक्ति की सहायता की इस मंदिर का निर्माण इतने कम समय में करना असंभव था।
लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में लगभग 150 वर्ष लगे थे तथा इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए 7000 मजदूरों ने इस पर कार्य किया था ।
कैलाश नाथ मंदिर के निर्माण को लेकर इन सभी मान्यताओं के बावजूद भी इस मंदिर के निर्माण का श्रेय राष्ट्रकूट वंश के शासक राजा कृष्ण प्रथम को ही दिया जाता है क्योंकि उन्होंने ही इस मंदिर का अधिकांश भाग निर्मित करवाया था और इस मंदिर को वर्तमान रूप देने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी ।
एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर की संरचना एवं वास्तुकला ( kailashnath temple Architecture in Hindi )
कैलाशनाथ मन्दिर में पत्थर को काटकर बना सुन्दर स्तम्भ को भीतर से कोरा तो गया है इसके साथ ही बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को तराश कर इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। अपनी समग्रता में 276 फीट लम्बा और 154 फीट चौड़ा यह मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।
इस मंदिर के निर्माण के लिये पहले पर्वत खंड को अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को अंदर तथा बाहर से काट – काट कर 90 फुट ऊँचा मंदिर गढ़ा गया और इसे एक अनोखे मंदिर का रूप दिया गया मंदिर के अंदर और बाहर चारों तरफ से यह मंदिर मूर्ति अलंकरणों से भरा हुआ है पहले इस मंदिर के आँगन मे तीन ओर कोठरियों की पाँत थी जो एक सेतु द्वारा इस मंदिर के ऊपरी खंड से संयुक्त थी लेकिन वर्तमान समय में यह तो नहीं है क्योंकि कुछ समय पहले यह सेतु गिर गया था।
इस मंदिर के सामने खुले मंडप में भगवान शिव के वाहक नन्दी विराजमान है और उनके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं इस मंदिर की यह कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का एक अद्भुत नमूना है।
इस मंदिर में प्रवेश द्वार मंडप तथा कई मूर्तियाँ हैं यह मंदिर दो मंजिला है मंदिर में सामने की ओर खुले मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हुए हैं इस मंदिर के नीचे कई हाथियों का निर्माण किया गया है और यह मंदिर इन्हीं हाथियों के ऊपर टिका हुआ है।
कैलाशनाथ मंदिर की विशेषता
276 फुट लंबे और 154 फुट चौड़े इस कैलाशनाथ मंदिर की कई विशेषताएं है जो इस मंदिर को अद्भुत बनाती है जिसमें से एक विशेषता यह है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही चट्टान को तराशकर किया गया है इस चट्टान का वजन लगभग 40 हजार टन बताया जाता है मंदिर जिस चट्टान से बनाया गया है उस चट्टान के चारों ओर के चट्टानों को सबसे पहले चट्टानों को ‘U’ आकार में काटा गया जिसमें लगभग 2 लाख टन पत्थर को हटाया गया।
आमतौर पर पत्थर से अगर कोई मंदिर बनाया जाता है तो उसे सामने की ओर से तराशा जाता है लेकिन 90 फुट ऊँचे इस कैलाशनाथ मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि चट्टान पर बने इस मंदिर को ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया है एक ही पत्थर से निर्मित यह मंदिर विश्व की सबसे बड़ी संरचना है।
कैलाश नाथ मंदिर की एक और विशेषता यह है कि इस मंदिर की दीवारों पर एक अलग प्रकार की लिपियों का प्रयोग किया गया है जिनके बारे में कोई भी आज तक कुछ भी नही समझ पाया ऐसा कहा जाता है कि जब भारत में अंग्रेजों का शासन था |
अंग्रेजों ने इस मंदिर के नीचे स्थित गुफाओं पर शोधकार्य शुरू किया लेकिन इन गुफाओं पर अत्यधिक रेडियोसक्रियता के कारण अंग्रेजों को यहां शोध कार्य बंद करना पड़ा इसके साथ ही यहां की गुफाओं को भी बंद कर दिया गया जो आज भी बंद हैं। कहां जाता है कि इस रेडियोसक्रियता का कारण वही भूमिअस्त्र है जो मंदिर के निर्माण में उपयोग किए और जिसे मंदिर के निर्माण के बाद भूमि के नीचे छुपा दिया गया।
मंदिर से जुड़ी एक और विचित्र बात और अत्यंत अनोखी बात है जो इस मंदिर को विशेष बनाती है वह यह है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन मंदिर में न तो कोई पुजारी है और न ही इस किसी प्रकार की पूजा पाठ की जाती है।
कैलाशनाथ मंदिर कैसे पहुँचे ( How to Reach Kailashnath Temple Ellora )
हवाई मार्ग द्वारा कैलाश नाथ मंदिर कैसे पहुंचे
आपको बता दें यदि आप हवाई द्वारा कैलाश नाथ मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो कैलाशनाथ मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद एयरपोर्ट है जो मंदिर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, तिरुपति, अहमदाबाद और तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों के हवाई अड्डे से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग द्वारा कैलाशनाथ मंदिर कैसे पहुंचे
अगर आप रेलमार्ग द्वारा कैलाशनाथ मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आपको बता दें कि हैदराबाद, दिल्ली, नासिक, पुणे और नांदेड़ जैसे बड़े शहरों से भी औरंगाबाद पहुँचने के लिए आपको अनेकों रेलसेवा मिल जाएगी इन रेल सेवाओं के माध्यम से आप आसानी से औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं कैलाश मंदिर से औरंगाबाद रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 28 किमी है औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से मंदिर पहुंचने के लिए आपको कई साधन मिल जाएंगे।
सड़क मार्ग द्वारा कैलाश नाथ मंदिर कैसे पहुंचे
औरंगाबाद पहुंचने के लिए लगभग सभी बड़े शहरों से बस सेवा उपलब्ध है जिसके सहारे आप आसानी से औरंगाबाद पहुंच सकते हैं बड़े शहरों की बात करें तो आपको बता दें की पुणे शहर से कैलाशनाथ मंदिर की दूरी लगभग 250 किमी है जबकि मुंबई से कैलाश मंदिर की दूरी लगभग 330 किमी है।
कैलाशनाथ मंदिर से संबंधित कुछ पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQ Related to Kailashnath Temple Ellora in Hindi )
1. कैलाशनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है ?
उत्तर :- कैलाशनाथ मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले मे अजंता एलोरा की गुफाओं में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है ।
2. एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर :- महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासक राजा कृष्ण प्रथम ने सन् 756 ई. से 773 ईस्वी के मध्य करवाया था ।
3. एलोरा का कैलाश नाथ मंदिर किस हिंदू देवता को समर्पित है ?
महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाश नाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिन्हें इस सृष्टि का आदि और अंत भी कहा जाता है उन्हें इस संपूर्ण सृष्टि का पालनकर्ता और विनाशक कहा जाता है ।
4. कैलाश नाथ मंदिर में किस देवता की पूजा की जाती है ?
उत्तर :- महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाश नाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है।
5. एलोरा का कैलाश नाथ मंदिर किस शैली में बना हुआ है ?
महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर प्रसिद्ध द्रविड़ शैली में बना हुआ है। इस मंदिर में एक प्रवेश द्वार है जहां पर भगवान शिवजी के वाहन नंदी महाराज के लिए एक घेरा बना हुआ है इसके साथ ही मंदिर के गर्भगृह के निकट एक मंडप बनाया गया है, जो क्रमानुसार घटती हुई मंजिलों से बना हुआ है इसी के साथ इस मंडप में लगभग 50 फिट ऊॅंचे नक्काशीदार स्तंभों वाला एक विशाल हॉल स्थित है।
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