कोणार्क सूर्य मंदिर , उड़ीसा । Konark Sun Temple, Orissa

कोणार्क सूर्य मंदिर , उड़ीसा । Konark Sun Temple, Orissa

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कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण

उड़ीसा के कोर्णाक में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण गंगा वंश के महान शासक राजा नरसिंहदेव प्रथम ने अपने शासनकाल के दौरान 13 वीं शताब्दी के मध्य में 1243 – 1255 ईस्वी के बीच लगभग 1200 कामगारों की सहायता से करवाया था । यह मंदिर हिंदू देवता सुर्य को समर्पित है अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए यह मंदिर पूरे विश्व में जाना जाता है। यह एक भव्य और आकर्षक मंदिर है विशिष्ट आकार और शिल्पकला के कारण यह मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है । ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का उत्सव मनाने के लिए राजा नरसिंहदेव ने कोणार्क के इस सूर्य मंदिर का निर्माण करावाया था । 

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सूर्य मंदिर कहां स्थित है ?

कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत के उड़ीसा राज्य में पुरी मंदिर से 35 किमी उत्तर – पूर्व में चंद्रभागाा नदी के तट पर स्थित है। यूनेस्को द्वारा सन् 1949 में कोणार्क के इस सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी ।

कोणार्क मंदिर का इतिहास ( History of Konark Temple )

13 वीं शताब्दी के मध्य निर्मित कोणार्क के इस सूर्य मंदिर को पौराणिक कलात्मक भव्यता और तकनीकी निपुणता का एक विशाल संगम माना जा सकता है। इतिहासकारों के अनुसार कोणार्क के इस सूर्य मंदिर का निर्माण गंग वंश के शासक राजा नरसिंहदेव में 1243 से 1255 ई. के मध्य में किया था इतिहासकारों का कहना है कि गंग वंश के शासक सुर्य देवता की पूजा करते थे जिसके कारण गंग वंश के शासक राजा नरसिंहदेव ने सुर्यदेव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण किया था लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर के निर्माण के दौरान राजा नरसिंह देव की अकाल मृत्यु हो गई जिसके कारण इस मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा ही रह गया जिसके परिणामस्वरूप मंदिर का अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार 15वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर आक्रमण कर इस मंदिर को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था |

फिर धीरे – धीरे इस मंदिर पर रेत जमा होती रही और यह मंदिर पूरी तरह से रेत से ढक गया । लेकिन 20 वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने इस स्थान पर मरम्मत का काम शुरू किया इसी के दौरान यह सूर्य मंदिर खोजा गया। 

कोणार्क मंदिर की पौराणिक कथा

कोणार्क का यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा को अपने पिता के द्वारा दिए हुए श्राप के कारण कुष्ठ रोग गया था इस कुष्ठ रोग के निवारण के कारण साम्बा ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित कोणार्क में 12 वर्षों तक तपस्या कर सूर्य देव को प्रसन्न किया था सूर्य देव ने उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलाई । इसका आभार प्रकट करने के लिए उन्होंने सूर्य देव के सम्मान में एक मंदिर बनाने का फैसला किया । कुष्ठ रोग से निवारण के पश्चात अगले दिन जब सांबा चंद्रभागा नदी में नहा रहे थे तो उन्हें भगवान सुर्य की एक प्रतिमा मिली  इस प्रतिमा को भगवान विश्वकर्मा ने सूर्यदेव के शरीर के भाग से अलग करके बनाया था। उन्होंने यह मूर्ति उनके द्वारा मित्रवन में बनाए गए मंदिर में स्थापित किया तब से इस स्थान को पवित्र माना जाता है और कोणार्क सूर्य मंदिर के रूप में जाना जाता है ।

कोणार्क सूर्य मंदिर की कलाकृतियां

इस मंदिर में प्राचीन कलाकृतियों और कलिंग शैली का एक अनोखा संगम देखने को मिलता है इस मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थर तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से किया गया है तथा इन पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है ।

इस अनोखे और भव्य मंदिर में सूर्य देवता को रथ के रूप में विराजमान किया गया है इसके साथ ही संपूर्ण मन्दिर स्थल इस प्रकिर से निर्मित किया गया है  जिसमें एक रथ को बारह जोड़ी पहियों के साथ सात घोड़ों द्वारा खींचते हुए दिखाया गया है और इस रथ के ऊपर सूर्य देव को विराजमान है हिन्दू मान्यता के अनुसार , सूर्य देवता के रथ में मौजूद ये बारह जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं, रथ में मौजूद सात घोड़े 7 दिनों के प्रतीक हैं

लेकिन वर्तमान समय में इन सात घोड़ों में से सिर्फ एक ही घोड़े की मूर्ति बचा हुआ है इसके साथ ही इस रथ में 8 ताड़िया मौजूद है जो दिन के आठ प्रहर के प्रतीक हैं ।

इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार के रूप में बनाया गया है इसके अलावा इस मंदिर में किसी भी देवी या देवता की मूर्ति मौजूद नहीं है । कहा जाता है कि यह  मंदिर सिर्फ समय की गति को दर्शाता है ।

कोणार्क सूर्य मंदिर में पूजा ना होने का कारण

कोणार्क का मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस भव्य कोणार्क मंदिर में किसी भी देवी देवता की पूजा नहीं होती है क्योंकि सूर्य देव को समर्पित इस मंदिर में 15 वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने आक्रमण कर यहां लूटपाट मचा दिया था इन आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया इसके साथ ही किस मंदिर में स्थापित सूर्य देवता की मूर्ति को भी खंडित कर दिया देवता की मूर्ति खंडित हो जाने के कारण लेकिन उस  इस सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहा स्थापित सुर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर रख दिया था ।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा करना  वर्जित है और वर्तमान समय में इस मंदिर में किसी भी भगवान की मूर्ति नहीं है। इसीलिए सुर्य देवता को समर्पित इस कोणार्क मंदिर में पूजा नहीं की जाती है।

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