25+ Kumar vishwas ki kavita | 25 सर्वश्रेष्ठ कुमार विश्वास की कविताएं
1. सब तमन्नाएं हो पूरी – Kumar Vishwas Ko Kavita
सब तमन्नाएं हो पुरी सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे चाहता वो है, मोहब्बत में नुमाइश भी रहे । आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से और किसी पेड़ की डाली पर रिहाइश भी रहे । उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे । मुझको मालूम है मेरा है वो, मै उसका हूँ उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे । मौसमों में रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते कुछ अदावत भी रहे, थोड़ी नवाज़िश भी रहे।
2. है नमन उनको – Kumar Vishwas ki kavita
है नमन उनको है नमन उनको कि, जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं। है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं। पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई। बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं। है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय .... हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ। हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है। नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है। सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है। शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है , जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी। उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं। है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये
3. जान कौन डगर ठहरेंगे ~ Kumar Vishwas ki Kavita
कुछ छोटे सपनो के बदले कुछ छोटे सपनो के बदले, बड़ी नींद का सौदा करने, निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे ! वही प्यास के अनगढ़ मोती, वही धूप की सुर्ख कहानी, वही आंख में घुटकर मरती, आंसू की खुद्दार जवानी, हर मोहरे की मूक विवशता, चौसर के खाने क्या जाने हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे । निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे ! कुछ पलकों में बंद चांदनी, कुछ होठों में कैद तराने, मंजिल के गुमनाम भरोसे, सपनो के लाचार बहाने, जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे, उनके भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे । निकल पड़े हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे ।।
4. जिसकी धुन पर दुनिया नाचे ~ Kumar Vishwas Poems in Hindi
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है, जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है । झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर, तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है ।। जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है , जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है । कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उम्र मगर , बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है । पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ? जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ? मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं, जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ? बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत-पर्वत खालीपन, मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन । इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है, एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन । तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ, तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ, तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन, तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ । बहुत बिखरा, बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया, हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया, अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा, कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया ।
5. ये वही पुरानी राहें हैं ~ Kumar Vishwas ki Kavita
ये वही पुरानी राहें हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपने सुहाने हैं, ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं । कुछ तुम भूली, कुछ मैं भूला, मंज़िल फिर से आसान हुई हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई । आँखों ने पुनः पढ़ी आँखें, न शिकवे हैं, न ताने हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपने सुहाने हैं । तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार जुड़ गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार । फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपने सुहाने हैं । आओ हम दोनों की सांसों का एक वही आधार रहे, सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे । बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं, चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपने सुहाने हैं ।
6. सूरज पर प्रतिबंध अनेकों ~ Kumar Vishwas ki Kavita
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर, नयन हमारे सीख रहे हैं, हँसना झूठी बातों पर । हमने जीवन की चौसर पर दाँव लगाए आँसू वाले, कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन मौके देखे बदले पाले । हम शंकित सच पा अपने, वे मुग्ध स्वयं की घातों पर नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर । हम तक आकर लौट गई हैं, मौसम की बेशर्म कृपाएँ, हमने सेहरे के संग बाँधी अपनी सब मासूम खताएँ । हमने कभी न रखा स्वयं को, अवसर के अनुपातों पर नयन हमारे सीख रहे हैं, हँसना झूठी बातों पर ।
7. ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह ~ Kumar Vishwas Poems in Hindi
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? ढेर सी चमक-चहक चेहरे पे लटकाए हुए। हंसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों, शाम तक उन ही थक़ानो में, लौटने के लिए ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? ये इतने पाँव सड़क को सलाम करते हैं, हरारतों को अपनी बक़ाया नींद पिला । उसी उदास और पीली सी रौशनी में लिपट रात तक उन ही मकानों में लौटने के लिए ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? शाम तक उन ही थकानो में लौटने के लिए! ये इतने लोग, कि जिनमे कभी मैं शामिल था, ये सारे लोग जो सिमटे तो शहर बनता है । शहर का दरिया क्यों सुबह से फूट पड़ता है, रात की सर्द चट्टानों में लौटने के लिए । ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह? शाम तक उन्हीं थकानों में लौटने के लिए! ये इतने लोग, क्या इनमें वो लोग शामिल हैं जो कभी मेरी तरह प्यार जी गए होंगे? या इनमें कोई नहीं जि़न्दा सिर्फ़ लाशें हैं । ये भी क्या जि़न्दगी का ज़हर पी गए होंगे? ये सारे लोग निकलते हैं घर से, इन सबको इतना मालूम है, जाना है, लौट आना है । ये सारे लोग भले लगते हों मशीनों से मगर इन जि़न्दा मशीनों का इक ठिकाना है, मुझे तो इतना भी मालूम नहीं जाना है कहाँ? मैंने पूछा नहीं था, तूने बताया था कहाँ? ख़ुद में सिमटा हुआ, ठिठका सा खड़ा हूँ ऐसे मुझपे हँसता है मेरा वक़्त, तेरे दोनों जहाँ । जो तेरे इश्क़ में सीखे हैं, रतजगे मैंने उन्हीं की गूँज पूरी रात आती रहती है । सुबह जब जगता है अम्बर, तो रौशनी की परी मेरी पलकों पे अंगारे बिछाती रहती है । मैं इस शहर में सबसे जुदा, तुझ से, ख़ुद से सुबह और शाम को इकसार करता रहता हूँ । मौत की फ़ाहशा औरत से मिला कर आँखें सुबह से जि़न्दगी पर वार करता रहता हूँ मैं कितना ख़ुश था चमकती हुई दुनिया में मेरी, मगर तू छोड़ गया हाथ मेरा मेले में । इतनी भटकन है मेरी सोच के परिंदों में मैं ख़ुद से मिलता नहीं भीड़ में, अकेले में । जब तलक जिस्म ये मिट्टी न हो फिर से, तब तक मुझे तो कोई भी मंजि़ल नज़र नहीं आती ये दिन और रात की साजि़श है, वरना मेरी कभी भी शब नहीं ढलती, सहर नहीं आती तभी तो रोज़ यही सोचता रहता हूँ मैं ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
8. अमावस की काली रातों में ~ Kumar Vishwas ki Kavita
अमावस की काली रातों में अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है, जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है । जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं । जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं, जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं, जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं, जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं, जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है, जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है, जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है, जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है, जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है, जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है, जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है, जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है, जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो, क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो, जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं, जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं, जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है, जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है, जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं, उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं, वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है, चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है, जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ, लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ, उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा, सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा, बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
9. हो काल गति से परे चिरंतन – Kumar Vishwas Poems in Hindi
हो काल गति से परे चिरंतन हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यही हो। कभी धरा पर कभी गगन में, कभी कहाँ थे कभी कहीं हो। तुम्हारी राधा को भान है तुम, सकल चराचर में हो समाये। बस एक मेरा है भाग्य मोहन, कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो। न द्वारका में मिलें बिराजे, बिरज की गलियों में भी नहीं हो। न योगियों के हो ध्यान में तुम, अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो। तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन, मगर इसे ये खबर नहीं है। बस एक मेरा है भाग्य मोहन, अगर कहीं हो तो तुम यही हो।
10. मेरे पहले प्यार ~ Kumar Vishwas ki Kavita
मेरे पहले प्यार ओ प्रीत भरे संगीत भरे, ओ मेरे पहले प्यार! मुझे तू याद न आया कर ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे! नस-नस के पहले ज्वार, मुझे तू याद न आया कर। पावस की प्रथम फुहारों से जिसने मुझको कुछ बोल दिये, मेरे आँसु मुस्कानों की, कीमत पर जिसने तोल दिये । जिसने अहसास दिया मुझको, मै अम्बर तक उठ सकता हूं जिसने खुद को बाँधा लेकिन मेरे सब बंधन खोल दिये । ओ अनजाने आकर्षण से, ओ पावन मधुर समर्पण से! मेरे गीतों के सार मुझे तू याद न आया कर। मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है, जो पीङा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है । लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नहीं खोना, मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है । ओ सहज सरल पलकों वाले, ओ कुंचित घन अलकों वाले! हँसते गाते स्वीकार मुझे तू याद न आया कर। ओ मेरे पहले प्यार मुझे तू याद न आया कर ।।
कुमार विश्वास जी की प्यार भरी कविताएं
कोई दीवाना कहता है ~ Kumar Vishwas ki Kavita
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !! मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !! मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है ! कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !! यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं ! जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !! समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता ! यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !! मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले ! जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !! भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा! हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!! अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का! मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
तुम अगर नहीं आई ~ Kumar Vishwas ki Kavita
तुम अगर नहीं आयीं तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा! साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा ना पाऊँगा ।। तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है, बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है ।। तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है, तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है ।। दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है? आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है ।। औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है, बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है ।। तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से, भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने ।। रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है, कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है ।। कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है! बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है ।।
मै तुम्हे ढूंढने ~ Kumar Vishwas ki Kavita
मै तुम्हे ढूंढने मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक रोज आता रहा, रोज जाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा ।। जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई, अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद् मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं ।। प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा । तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा ।। एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी, गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी । तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी ।। दृष्टि आकाश में आस का एक दिया तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई! मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा ।। तुम चली गई तो मन अकेला हुआ सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ । कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ । खुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर, रूठती तुम रही मैं मानता रहा । तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा । मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक रोज आता रहा, रोज जाता रहा ।।
कुमार विश्वास की दर्द भरी कविता
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें ~ Kumar Vishwas ki kavita
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें । जिस पल हल्दी लेपी होगी, तन पर माँ ने जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं, सौगातें ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें। उस पल मीठी-सी धुन, घर के आँगन में सुन रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें, कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें । कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा । साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा उस पल सोचा मन में, आगे अब जीवन में जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें । कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं, अख़बारों मे पढ़कर कैसा लगता होगा सावन को रातों में, साजन की बाँहों में तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा। उस पल के जीने में, आँसू पी लेने में मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें । हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें, कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें ।
Kumar Vishwas desh bhakti Poem in Hindi
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो ~ Kumar Vishwas Poems
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला बस इतना अता करना चाहे, जन्नत ना अता करना मौला। शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो । बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में, बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में जीते-जी इसका मान रखें , मर कर मर्यादा याद रहे हम रहें कभी ना रहें मगर इसकी सज-धज आबाद रहे । जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो । होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो । गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें । हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें । परवरदिगार, मैं तेरे द्वार पर ले पुकार ये आया हूं चाहे अज़ान ना सुनें कान, पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो । होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो ।
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