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भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य । Indian Classical dance in Hindi

भारत के 8 प्रमुख शास्त्रीय नृत्य । ndian Classical dance In Hindi

भारत के 8 प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य । List of Best 8 Indian Classical Dance in Hindi

भारत के शास्त्रीय नृत्य का महत्व

भारत में शास्त्रीय नृत्य की जड़े प्राचीन परंपराओं से है भारतीय शास्त्रीय नृत्य को दुनिया की सबसे व्यापाक और सबसे प्राचीन नृत्य शैली माना जाता है भारत के शास्त्रीय नृत्य का अधिकांश विकास ईसा पूर्व के दूसरी शताब्दी में हुआ महान संगीतज्ञ और नाट्यविद भरत मुनि ने भी अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र में शास्त्रीय नृत्य का वर्णन किया है इस पुस्तक में भारत के नृत्य और नाटक की विशेषताओं का वर्णन किया गया है इस पुस्तक नृत्य के दो पहलुओं – शुद्ध नृत्य और नित्र व्याख्यात्मक नृत्य का वर्णन किया गया है ।

भारत के अधिकांश शास्त्रीय नृत्य मंदिर कला के रूप में विकसित हुए हैं छठी शताब्दी के बाद भारत के कई राजवंशों ने इन कलाओं के विकास में योगदान दिया। मंदिर कला में यह रुचि 9 वीं और 10 वीं शताब्दी में मंदिरों के निर्माण के कारण हुई । उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में , तंजौर चौकड़ी के रूप में जाने जाने वाले चार भाइयों ने नृत्य परंपरा को परिभाषित किया उस समय नृत्य पूजा का एक माध्यम था, नर्तक भगवान की मूर्ति के सामने अपने नृत्य का प्रदर्शन करते थे। यही कारण है कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य मुख्य रूप से एकल आधारित कला बन गई । मंदिरो में नृत्य को करने महत्त्व इस नृत्य कला को लोगों तक पहुंचाना था इसी कारण उस समय मंदिर नृत्य को संस्थागत रूप दिया गया ।

लेकिन वर्तमान में केवल बैले या समूह नृत्य प्रचलन में हैं। लेकिन फिर भी , भारतीय शास्त्रीय नृत्य आज भी  एकल प्रदर्शन कला के रूप में बना हुआ है । भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मौलिक विशेषताएं लोगों की धार्मिक मान्यताओं और हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं से उत्पन्न हुई हैं । भारत के अलग-अलग जगहो में अपने अलग-अलग शास्त्रीय नृत्य है लेकिन भारत के संगीत नाटक अकादमी ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की 8 प्रमुख शैलियों को महत्त्व दिया है।

भारत के 8 प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य

1. भरतनाट्यम – तमिलनाडु

भरतनाट्यम दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है जो भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक वृहद रूप है इस समय भाव, राग और ताल तीन कलाओं का समावेश है इन तीनों के शब्द संधियों के द्वारा इस शास्त्रीय नृत्य का नाम भरतनाट्यम रखा गया है भरतानाट्यम नृत्य के दो भाग हैं पहला भाग नृत्य और दूसरा अभिनय । यह शास्त्रीय नृत्य भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है ।

भरतनाट्यम नृत्य की उत्पत्ति :- इस नृत्य का विकास दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य क्षेत्र में आसपास के मंदिरों से हुआ है चिदंबरम के प्राचीन मंदिरों की मूर्तियों को इस नृत्य शैली का प्रेरणास्रोत माना जाता है। यह भारत की सबसे प्राचीन नृत्यकला है लेकिन प्राथमिक समय में इस नृत्य को उचित सम्मान नहीं दिया जाता था 19 वीं में यह नृत्य केवल मंदिरों में होता था लेकिन 20 वीं सदी में क‌ई नृत्यप्रेमियो ने इस शास्त्रीय नृत्य के विकास में अपना योगदान दिया लेकिन अंग्रेज सरकार ने इस नृत्य को बैन कर दिया जिसका भारत के लोगों ने विरोध किया 20 वीं सदी के मध्य तक यह नृत्य मंदिरो के बाहर आने लगा और 20 वीं सदी के अंत तक यह नृत्यकला काफी तेजी से विकास हुआ और वर्तमान समय में यह नृत्य भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है।

मुख्य परंपरा के अनुसार यह एक एकल नृत्यकला है

इस नृत्य में प्रर्दशन केवल एक स्त्री द्वारा किया जाता है प्राथमिक समय में इस नृत्य में हिंदू परंपरा के वैष्णव, शैव और शक्ति आदि का प्रभाव देखने को मिलता था लेकिन वर्तमान समय में यह शास्त्रीय नृत्य किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं है ।

2. कुचिपुड़ी – आंध्रप्रदेश

इस शास्त्रीय नृत्य का उदय आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले से हुआ है। इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले के देवी तालुक क्षेत्र में स्थित कुचिपुड़ी गांव के नाम पर रखा गया है क्योंकि प्राचीन समय में इसी गांव के ब्राह्मण, इस शास्त्रीय नृत्य का अभ्यास किया करते थे जो उस समय उनका एक पारंपरिक नृत्य था प्राचीन परंपरा के अनुसार यह नृत्य केवल ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों द्वारा ही किया जाता था इस नृत्यकला में मुख्यत: भगवान विष्णु और श्री कृष्णा पर आधारित वैष्णव परंपरा को दर्शाया जाता है ।

3. ओड़िसी – उड़ीसा

ओड़िसी भारत के असम राज्य की एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर इस नृत्य को सबसे पुराने नृत्य रूपो में से एक माना जाता है इस नृत्य का उल्लेख ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों में किया गया है इस नृत्य का उदय उड़ीसा के मंदिरों में नृत्य करने वाली देवदासियों ने किया है इस नृत्य को पुराने साहित्यों में ‘ ओरिसी  ‘के नाम से जाना जाता है पारंपरिक रूप से यह नृत्य प्रदर्शन कला की एक नृत्य नाटिका शैली है इसमें मुख्य रूप से महिलाएं प्रदर्शन करती है इसमें धार्मिक कहानियां के आध्यात्मिक विचारों को प्रदर्शन के माध्यम से व्यक्त किया जाता है ओड़िसी शास्त्रीय नृत्य की नींव भरतमुनि के नाटक शास्त्र से मिलती है इसके साथ ही हिंदू मंदिरों, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के पुरातात्विक स्थलों से भी इस नृत्य का प्रमाण मिलता है।

4. कथकली – केरल

यह केरल राज्य के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र की एक परंपरागत एवं समृद्ध शास्त्रीय नृत्य है कथकली में ‘ कत्थ ‘ का अर्थ होता है कथा और ‘ कलि ‘ का अर्थ होता है प्रर्दशन, संयुक्त रूप से कथकली शब्द का अर्थ होता है विभिन्न कथाओं का प्रर्दशन इस नृत्यशैली में विभिन्न पोराणिक कथाओं का नृत्य के रूप में प्रदर्शन किया जाता है प्रारंभ में यह नृत्य हिंदू धर्म की विशेषताओं को नाटक के रूप में प्रदर्शित करता था इस शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति केरल में 17 वीं शताब्दी में हु‌ई यह केरल राज्य का एक मनमोहक शास्त्रीय नृत्य है।

इस शास्त्रीय नृत्य में रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों और पुराणों के विशेष चरित्र का नाटक के रूप में अभिनय किया जाता है। इस शास्त्रीय नृत्य में नर्तक फूूलदार दुपट्टो , आभूषणों और मुकुट से सजे होते हैं उनका आकर्षक सौंदर्य और पश्च संगीत के साथ उनके नाट्य पात्रों की विस्तृत वेशभूषा देखने लायक होती है। इस शास्त्रीय नृत्य में नाटक के विभिन्न किरदार को चित्रित करनेेे के लिए नर्तक सांकेतिक रूप से विभिन्न प्रकार के रूप धरते है।

इस शास्त्रीय नृत्य की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें नाटक के चरित्र की भूमिका को केवल अपने हाथों और पैरों के हाव – भाव की विकसित भाषा तथा अपने चेहरे की अभिव्यक्ति के रूप में प्रदर्शित करते हैं इस नृत्य में चरित्र कभी बोलते नहीं है। इस शास्त्रीय नृत्य में पहले पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाते थे लेकिन वर्तमान समय में इस नृत्य में महिलाओं को भी शामिल किया गया है।

5. कथक – राजस्थान

कथक  उत्तर भारत और राजस्थान राज्य की एक प्रमुख और भारत के 8 शास्त्रीय लोक नृत्यों में से एक है कथक शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत शब्द ” कथा “ से हुई है कथक शब्द का अर्थ होता है कहानियों को कथा के माध्यम से व्यक्त करना । कथक नृत्य शैली की उत्पत्ति भक्ति आंदोलन के समय हुई इस शास्त्रीय नृत्य में विभिन्न कहानियों को कथा और नृत्य के माध्यम से व्यक्त किया जाता है यह शास्त्रीय नृत्य कहानियों को बोलने का एक साधन है प्राचीन समय में कत्थक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था महाभारत में भी कथक नृत्य का वर्णन है इसलिए इस नृत्य शैली को बहुत प्राचीन नृत्य शैली माना जाता है प्राचीन लेखों के अनुसार मध्यकाल में इस नृत्य का संबंध कृष्ण कथा से था जिसमें कृष्णा के बचपन की कहानियों को कथा के माध्यम से व्यक्त किया जाता था 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में यह नृत्य मुगल दरबार में फारसी भाषा के साथ पेश किया जाने लगा।

6. मोहिनीअट्टम – केरल

मोहिनीअट्टम केरल का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है यह नृत्य शैली भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार पर आधारित है पौराणिक कथाओं एवं हिंदू ग्रंथों के अनुसार ‘ मोहिनी ‘ भगवान विष्णु का एक नारी अवतार था मोहिनी शब्द का अर्थ होता है मन को मोहने वाला कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत के लिए जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था और असुरों ने अमृत पर अपना नियंत्रण कर लिया तो भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार ने सभी असुरों का मन मोह लिया और असुरों से अमृत को छीनकर देवताओं को दे दिया।

मोहिनीअट्टम नृत्य शैली का उद्धव भारत के केरल राज्य में हुआ है और वर्तमान समय में यह शास्त्रीय नृत्य केरल में काफी लोकप्रिय है इस नृत्य शैली में ‘ लस्य शैली ‘ का प्रयोग किया जाता है इस शैली में बहुत ही कोमल भावों को विभिन्न मुद्राओं से नृत्य के रूप में दर्शाया जाता है यह नृत्य शैली परंपरागत रूप से महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एकल नृत्य है यह एक बहुत ही कठिन नृत्य शैली है ।

7. मणिपुरी – मणिपुर

मणिपुरी भारत की प्रमुख शास्त्रीय नृत्य में से एक है जिसकी उत्पत्ति भारत के उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर से हुआ है इसी के कारण इस शास्त्रीय नृत्य का नाम मणिपुरी रखा गया यह नृत्य शैली अनुष्ठानों और पारंपरिक त्यौहारों से जुड़ा हुआ है यह शास्त्रीय नृत्य हिंदू धर्म के वैष्णव प्रसंगो पर आधारित है जिसमें शिव, शक्ति आदि के कथाओं का नृत्य के रूप में वर्णन किया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह नृत्य राधा – कृष्ण की ‘ रासलीला ‘ के लिए जाना जाता है यह भारत के अन्य शास्त्रीय नृत्यों से काफी भिन्न है इस शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन एक नृत्य दल मिलकर करता है इसमें शरीर को धीमी गति के साथ चलाया जाता है इसकी मनमोहक गति से हाथ की भुजाएं अंगुलियों तक प्रवाहित होती है जिसके कारण इस नृत्य का प्रर्दशन काफी मनोरंजक होता है।

8. सत्त्रिया – असम

सत्त्रिया असम राज्य का एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है इस नृत्य का उदय 15 वीं सदी में वैष्णव समुदाय के लोगों द्वारा किया गया उस समय यह शास्त्रीय नृत्य भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित था 15 वीं सदी के प्रारंभ में वैष्णव मत के संत श्रीमंत शंकरदेव ने इस नृत्य को भक्ति आंदोलन के साथ जोड़ा।

इस नृत्य को भारत के ‘ संगीत नाटक अकादमी ‘ ने वर्ष 2000 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा दिया।

यह नृत्य पौराणिक विषयों पर आधारित होता है इस नृत्य में अंकिया नाट और ओजापाली नृत्य भी शामिल है इस नृत्य में मुख्य गायक गाते हुए अभिनय करता है और कहानियां सुनाता है जबकि नर्तकियों का एक छोटा समूह झांझ बजाते हुए नृत्य करता है ।

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