25+ ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi | 25+ रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं

25+ ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi | 25+ रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं

Short biography of Ramdhari Singh dinkar

हिन्दी जगत के सुविख्यात कवि और भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में बिहार के बेगूसराय जिले के मुंगेर में सिमरिया क्षेत्र में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनके पिता रवि सिंह एक सामान्य किसान थे जबकि उनकी माता का नाम रूप देवी था जब रामधन सिंह दिनकर की आयु 2 वर्ष की थी उस अवस्था में ही उनके पिता का देहांत हो गया इसके बाद उनकी विधवा माता ने ही उनका पालन पोषण किया ।

संस्कृत के एक पंडित के पास उन्होंने अपनी  प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ की जिसके बाद दिनकर जी ने अपने गाँव के ही ‘प्राथमिक विद्यालय’ से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम के राष्ट्रीय मिडिल स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, राजनीति विज्ञान में बीए किया। इस दौरान उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का भी गहन अध्ययन किया था बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए । दिनकर जी का बचपन से ही कविता संग्रह में काफी रूचि था जिसके कारण उन्होंने अपने अध्यापक की नौकरी के साथ ही कविताएं लिखना प्रारंभ किया उनका पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश‘ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं लिखी उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं

रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं । देश की आजादी की लड़ाई में भी रामधारी सिंह दिनकर ने अपना महत्त्व योगदान किया वे महात्मा गांधी के बड़े मुरीद थे।

रामधारी सिंह दिनकर के अधिकतर काव्य रचनाओं में देशभक्ति और प्रेरणा का साक्ष्य मिलता है आधुनिकता बोध उनकी अंतिम काव्य रचना थी।

द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबंधन काव्य कुरुक्षेत्र को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान दिया गया।

रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध काव्य रचनाओं के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

उनका देहांत 24 अप्रैल 1974 को तमिलनाडु, मद्रास में हुआ लेकिन अपने प्रसिद्ध काव्य रचनाओं और कविताओं के लिए वह सदा अमर रहेंगे।

वर्ष 1999 में भारत सरकार ने उनके नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया था ।

भारत सरकार द्वारा 1999 में जारी रामधारी सिंह दिनकर जी के नाम का डाक टिकट Image Source – Wikipedia.org

रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध काव्य रचना

  1. कुरुक्षेत्र 1946
  2. रश्मिरथी – 1953

कुरुक्षेत्र रामधारी सिंह दिनकर की सबसे प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में से एक है इस काव्य रचना में उन्होंने महाभारत के शांति पर्व के मूल कथानक का ढांचा लेकर युद्ध और शांति लिए गंभीर और महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार पितामाह भीष्म और युधिष्ठिर के संलाप के रूप में प्रस्तुत किया है

द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके इस काव्य कुरुक्षेत्र को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान दिया गया है।

25+ Ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi 2023

कृष्ण की चेतावनी — ramdhari singh dinkar famous poems

कृष्ण की चेतावनी रामधारी सिंह दिनकर जी के द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध कविताओं में से एक है रामधारी सिंह दिनकर सिंह ने इस कविता का सार महाभारत से लिया और इस कविता के जरिए रामधारी सिंह दिनकर जी महाभारत की एक प्रसिद्ध घटना को अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है ।

इस कविता के जरिए रामधारी सिंह ने इस कविता के जरिए महाभारत की उस घटना का वर्णन किया है जब भगवान श्री कृष्ण युद्ध से पहले पांडवों का संदेश लेकर दुर्योधन के पास जाते हैं और दुर्योधन को पांच पांडवों के लिए 5 गांव देने की मांग करते हैं लेकिन दुर्योधन पांडवों को 5 गांव देने से साफ मना कर देते हैं और श्री कृष्ण का अपमान करते हुए उन्हें बंदी बनाने का प्रयास करते हैं तब भगवान श्री कृष्णा अपना विकराल रूप दुर्योधन को दिखाते हैं और कहते हैं हे दुर्योधन तूने मेरे शांति प्रस्ताव को नहीं माना इसलिए तुझे अब रण होगा और अपना सब कुछ गंवाना होगा रामधारी सिंह दिनकर ने अपने शब्दों में महाभारत की इसी घटना का विस्तार से वर्णन किया है ।

कृष्ण की चेतावनी का संपूर्ण कविता संग्रह हमने नीचे उपलब्ध किया है यह संपूर्ण कविता रामधारी सिंह दिनकर जी के द्वारा लिखी गई है।

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये।

दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका, समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित होकर बोले

जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें।

उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश!
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल, शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जंजीर बढ़ाकर साध इन्हें, हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

भूलोक, अतल, पाताल देख, गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन, यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान, इसमें कहाँ तू है।

अम्बर में कुन्तल-जाल देख, पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं।

जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन, साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर, हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन, छा जाता चारों ओर मरण।

बाँधने मुझे तू आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है, वह मुझे बाँध कब सकता है?

हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा।

टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा। फिर कभी नहीं जैसा होगा।

भाई पर भाई टूटेंगे, विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा, हिंसा का पर, दायी होगा।

थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है ~ by ramdhari Singh dinkar

सच है विपत्ति जब आती है? कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते क्षण एक नहीं धीरज खोते !

विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटो में राह बनाते हैं !

मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं जो आ पड़ता सब सहते हैं उद्योग निश्त वे रहते हैं ।

शूलों का मूल नसाने को तो बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को ! है कौन विघ्न एसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में।

खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़ ! मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है !

गुण बड़े एक से एक प्रखर हैं, छिपे मानवों के भीतर मेंहदी में जैसे लाली हो वर्तिका बीच उजियाली हो !

बत्ती जो नहीं जलाता है, रौशनी नहीं वह पाता है !

पीसा जाता जब इक्षुदण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड, मेंहदी जब सहती है पहार बनती ललनाओं का शिंगार !

जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं।

वसुधा का नेता कौन हुआ? भरखण्ड विजेता कौन हुआ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव धर्म प्रणेता कौन हुआ?

जिसने न कभी अराम किया, उसने ही विघ्नों में रहकर नाम किया !

जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं, मन को मरोड़ते हैं पलपल, तन को झंझोरते हैं पलपल !

सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही !

वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं, वर्षा अंधड़ आतप अखण्ड, पौरूष के हैं साधन प्रचण्ड !

बन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल ना मिलते हैं

कंकरियां जिनकी सेज सुधर, छाया देता केवल अंबर, विपदाएं दूध पिलाती हैं, लोरी आंधियां सुनाती हैं !

जो लाक्षग्रह में जलते हैं, वे ही शूरमा निकलते हैं !

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा., मेरे किशोर मेरे ताजा !जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दें ! तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिंगारी है !

सच है विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है, कायर को ही लहराती है ।

शूरमा नहीं विचलित होते क्षण एक नहीं धीरज खोते !विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटे में राह बनाते हैं ।

सच में विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, कायर को ही दहलाती है।

हे वीर बंधु

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ? हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?

यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ? दस-बीस वधिक हों तो हम नाम गिनायें । पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है, हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।

घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है, जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।

जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है, या किसी लोभ के विवश मूक रहता है, उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक है, यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।

चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं, जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं, जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,

या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं; यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है, भारत अपने घर में ही हार गया है।

है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?

किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ? जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है, दैहिक बल को कहता यह देश गलत है।

नेता निमग्न दिन-रात शान्ति – चिन्तन में, कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।

यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है, पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।

ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ? अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो । वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है, जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।

रामधारी सिंह दिनकर की काव्य कविता – कलम आज उनकी जय बोल

कलम आज उनकी जय बोल ।

जला अस्थियां बारी बारी चटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्य बेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल कलम आज उनकी जय बोल।

जो अगुणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे जल जलाकर बुझ गए किसी दिन मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल! कलम आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल सिखाएं उगल रही सौ लपट दिशाएं जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल! कलम आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा साखी हैं, उनकी महिमा के सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल कलम आज उनकी जय बोल।

कोई अर्थ नहीं ~ ramdhari Singh dinkar poems

नित जीवन के संघर्षो से जब टूट चुका हो अन्तर्मन, तब सुख के मिले समन्दर का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

जब फसल सूख कर जल के बिना तिनका तिनका बन गिर जाये, फिर होने वाली वर्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

सम्बन्ध कोई भी हो लेकिन यदि दुःख में साथ न दें अपना, फिर सुख में उन सम्बन्धों का रह जाता कोई अर्थ नहीं।

छोटी-छोटी खुशियों के क्षण निकले जाते हैं रोज जहाँ, फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं

मन कटुवाणी से आहत हो, भीतर तक छलनी हो जाये, फिर बाद कहे प्रिय वचनों का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

सुख साधन चाहे जितने हो, पर काया रोगों का घर हो, फिर उन अगनित सुविचारो का रह जाता कोई अर्थ नहीं।

रामसिंह सिंह दिनकर द्वारा लिखित काव्य रचनाओं का संग्रह
1. बारदोली-विजय संदेश (1928)13. मिर्च का मज़ा (1951)25. परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
2. प्रणभंग (1929)14. रश्मिरथी (1952)26. आत्मा की आँखें (1964)
3. रेणुका (1935)15. दिल्ली (1954)27. कोयला और कवित्व (1964)
4. हुंकार (1938)16. नीम के पत्ते (1954)28. मृत्ति-तिलक (1964)
5. रसवन्ती (1939)17. नील कुसुम (1955)29. दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
6. द्वंद्वगीत (1940)18. सूरज का ब्याह (1955)30. हारे को हरिनाम (1970)
7. कुरूक्षेत्र (1946)19. चक्रवाल (1956)31. संचियता (1973)
8. धूप-छाँह (1947)20. कवि-श्री (1957)32. दिनकर के गीत (1973)
9. सामधेनी (1947)21. सीपी और शंख (1957)33. रश्मिलोक (1974)
10. बापू (1947)22. नये सुभाषित (1957)34. उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)
11. इतिहास के आँसू (1951)23. लोकप्रिय कवि दिनकर (1960)
12. धूप और धुआँ (1951)24. उर्वशी (1961)

रामधारी सिंह दिनकर जी के प्रमुख निबंध संग्रह

  1. मिट्टी की ओर (1946ई०)
  2. अर्द्धनारीश्वर (1952ई०
  3. रेती के फूल (1954ई०)
  4. हमारी संस्कृति (1956ई०)
  5. वेणुवन (1958ई०)
  6. उजली आग (1956ई०)
  7. राष्टभाषा और राष्ट्रीय एकता (1958ई०)
  8. धर्म नैतिकता और विज्ञान (1959ई०)
  9. वट पीपल (1961ई०)
  10. साहित्य मुखी (1968ई०)
  11. आधुनिकता बोध (1973ई०)

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